जम्मू-कश्मीर में भारी बारिश और उफनती नदियों के कारण आई बाढ़ को देखते हुए भारत ने पाकिस्तान को संभावित खतरे के बारे में सूचित किया है। पाकिस्तानी मीडिया आउटलेट्स जियो न्यूज और द न्यूज इंटरनेशनल के अनुसार, भारत ने 24 अगस्त को पहली बार अपने इस्लामाबाद स्थित हाई कमीशन के जरिये पाकिस्तान को तवी नदी में बाढ़ की आशंका के बारे में सतर्क किया।
खास बात यह है कि यह जानकारी सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) के माध्यम से साझा नहीं की गई, बल्कि सीधे कूटनीतिक चैनल का इस्तेमाल किया गया। यह अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले के बाद से दोनों देशों के बीच पहला महत्वपूर्ण संपर्क है। रिपोर्टों में यह कहा गया है कि भारत ने सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान को बाढ़ की चेतावनी दी। हालांकि नई दिल्ली या इस्लामाबाद की ओर से कोई आधिकारिक पुष्टि अभी तक जारी नहीं की गई है।
जम्मू में बाढ़ की गंभीर स्थिति
जम्मू और कश्मीर के जम्मू क्षेत्र में भारी बारिश के कारण गंभीर बाढ़ की स्थिति बनी हुई है। 24 घंटों में 190.4 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो एक सदी में अगस्त महीने की दूसरी सबसे अधिक बारिश है। जनीपुर, रूप नगर, तालाब तिल्लू, ज्वेल चौक, न्यू प्लॉट और संजय नगर जैसे निचले इलाकों में पानी भर गया है। बाढ़ के पानी ने घरों में प्रवेश किया है, दीवारों को नुकसान पहुंचाया है और वाहनों को बहा ले गया है।
तावी, चिनाब, उझ, रावी और बसंतर जैसी नदियां उफान पर हैं, जिससे आपदा प्रबंधन टीमों के लिए हाई अलर्ट जारी किया गया है। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए भारत ने पाकिस्तान को संभावित जल प्रवाह के बारे में सूचित करने का निर्णय लिया।
उधर, पाकिस्तान में जून से जारी लगातार मानसूनी बारिश ने हालात गंभीर कर दिए हैं। देश के कई शहरी केंद्र बाढ़ की चपेट में हैं। स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, लाहौर के गुलबर्ग, लक्ष्मी चौक, जेल रोड और आसपास के इलाके पानी में डूब गए। सड़कों पर जलभराव से यातायात ठप है और बाढ़ का पानी घरों और दुकानों तक घुस आया है।
अब तक कम से कम 788 लोगों की मौत हो चुकी है और 1,000 से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं। पाकिस्तान के प्रमुख दैनिक डॉन के अनुसार, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने आंकड़े जारी कर बताया कि मृतकों में 200 बच्चे, 117 महिलाएं और 471 पुरुष शामिल हैं।
प्रदेशवार स्थिति भी चिंताजनक है। पंजाब में 165 मौतें दर्ज की गईं, जबकि खैबर पख्तूनख्वा में सबसे ज्यादा 469 लोगों की जान गई। इसके अलावा सिंध और बलूचिस्तान के कई जिलों में भी बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं से भारी तबाही हुई है।
सिंधु जल संधि
सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित एक महत्वपूर्ण समझौता है। विभाजन के बाद जब सिंधु नदी का नियंत्रण दोनों देशों के बीच संभावित संघर्ष का विषय बना, तो पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र गया और संयुक्त राष्ट्र ने विश्व बैंक को मध्यस्थता के लिए लाया। लगभग नौ साल की बातचीत के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने अंततः 1960 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए।
इस संधि के तहत भारत को तीन पूर्वी नदियों – सतलुज, व्यास और रावी का उपयोग करने का अधिकार है, जबकि पाकिस्तान पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब का उपयोग करता है। यह संधि तीन युद्धों और कई कूटनीतिक संकटों के बावजूद बनी रही है।
हालांकि 22 अप्रैल 2025 को जम्मू और कश्मीर के पहलगाम जिले की बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने कड़ा रुख अपनाते हुए सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया था। इस हमले में 26 पर्यटकों की मृत्यु हो गई थी। भारत का तर्क था कि पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन कर रहा है, जिसके कारण यह कदम उठाना पड़ा। इस आतंकी हमले के जवाब में भारत ने 7 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया जिसमें पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में आतंकी शिविरों को निशाना बनाया गया। इसके बाद दोनों देशों के बीच संपर्क लगभग बंद हो गया था।
सिंधु जल संधि के स्थगित करने के बाद पाकिस्तान के नेताओं ने “युद्ध की धमकी” भी दी थी। पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार इस्लामाबाद अपने आवंटित पानी को रोकने या मोड़ने के किसी भी प्रयास को “युद्ध का कार्य” मानता है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने पहले कहा था कि भारत को पाकिस्तान के पानी की “एक बूंद भी छीनने” की अनुमति नहीं दी जाएगी। उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर भारत ने ऐसा कोई कार्य करने का प्रयास किया तो “आपको फिर से ऐसा सबक सिखाया जाएगा कि आप कान पकड़कर बैठ जाएंगे।”
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने भी सिंधु जल संधि के निलंबन को सिंधु घाटी सभ्यता पर हमला करार दिया था और कहा था कि अगर नई दिल्ली इसे युद्ध में धकेलने की कोशिश करेगी तो राष्ट्र पीछे नहीं हटेगा। पाकिस्तानी नेताओं ने इस निर्णय पर भारत को “युद्ध की धमकियां” दी थीं।
सिंधु जल संधि का मुद्दा दक्षिण एशिया की जल राजनीति का केंद्रीय विषय है। पाकिस्तान अपनी कृषि और जल आपूर्ति के लिए काफी हद तक इन नदियों पर निर्भर है, जबकि भारत भी अपनी ऊर्जा और सिंचाई आवश्यकताओं के लिए इन जल संसाधनों का उपयोग करता है। जलवायु परिवर्तन और बढ़ती जल मांग के कारण यह मुद्दा और भी जटिल हो गया है।