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‘पहलगाम जैसी घटना नजरअंदाज नहीं कर सकते’, जम्मू-कश्मीर के लिए पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने से पहले वहां के ‘जमीनी हालात’ पर विचार किया जाना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने कहा कि ‘पहलगाम जैसी घटनाओं’ को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता। चीफ जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने केंद्र से भी जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर आठ हफ्ते के भीतर जवाब देने को कहा है। 

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि इस संबंध में कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन क्षेत्र में ‘कुछ विचित्र परिस्थितियाँ’ हैं। मेहता ने बताया कि संविधान पीठ से किए गए वादे के अनुसार विधानसभा चुनाव हुए, जिसने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के फैसले को बरकरार रखा था। उन्होंने आगे कहा, ‘यह याचिकाकर्ताओं के लिए माहौल बिगाड़ने का समय नहीं है।’

सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘हमने चुनावों के बाद राज्य का दर्जा देने का आश्वासन दिया था (लेकिन) मुझे नहीं पता कि इस मुद्दे को अब क्यों उठाया जा रहा है। यह पानी को गंदा करने का समय नहीं है।’

याचिका में क्या कहा गया है?

शिक्षाविद जहूर अहमद भट और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक द्वारा पिछले साल दायर की गई इस याचिका में दो महीने के भीतर राज्य का दर्जा बहाल करने के निर्देश देने की मांग की गई है। इसमें तर्क दिया गया है कि लगभग पाँच वर्षों तक जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाए रखने से उसकी लोकतांत्रिक व्यवस्था कमजोर हुई है। साथ ही याचिका में कहा गया है कि इससे विकास को ‘गंभीर नुकसान’ पहुँचा है और उसके नागरिकों के अधिकारों को ठेस पहुँची है।

कुछ और याचिकाएं भी हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने अदालत से ऐसी सभी याचिकाओं को एक साथ सूचीबद्ध करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि ‘एक पीठ गठित की जा सकती है और एक समय-सीमा तय की जा सकती है।’ इस पर चीफ जस्टिस ने जवाब दिया, “पहले सरकार को जवाब देने दीजिए।’

याचिका में यह भी कहा गया है कि यह देरी सुप्रीम कोर्ट के उस पूर्व निर्देश का उल्लंघन है जिसमें राज्य का दर्जा ‘जल्द से जल्द और यथाशीघ्र’ बहाल करने का निर्देश दिया गया था, खासकर तब जब विधानसभा चुनाव के नतीजे 8 अक्टूबर, 2024 को घोषित होने वाले थे। 

दिसंबर 2023 के अपने फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 केवल एक अस्थायी प्रावधान था। कोर्ट ने कहा था कि 1957 में राज्य की संविधान सभा के समाप्त होने के बाद राष्ट्रपति के पास इसे रद्द करने का अधिकार है।

2019 में हटाया जम्मू-कश्मीर को बना दिया गया था केंद्र शासित प्रदेश

अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था। सरकार ने इससे पहले अनुच्छेद 370 को हटाया जो इसे विशेष दर्जा देता था। तब से सरकार बार-बार कहती रही है कि राज्य का दर्जा ‘उचित समय पर’ बहाल किया जाएगा, लेकिन समय-सीमा की घोषणा कभी नहीं की गई है। 

चुनाव आयोग को 2023 में विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया गया था। हाल ही में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने  सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को पत्र लिखकर जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए संसद में एक विधेयक पेश करने का आग्रह किया था।

अब्दुल्ला ने कहा कि राज्य का दर्जा बहाल करना कोई ‘एहसान’ नहीं, बल्कि एक ‘आवश्यक सुधार’ है। चुनाव प्रचार के दौरान राज्य का दर्जा बहाल कराना भी इन पार्टियों एक प्रमुख मांग थी।
 
हालांकि, 22 अप्रैल के बाद जम्मू-कश्मीर के लिए पूर्ण राज्य की मांग को गहरा धक्का लगा जब लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े द रेजिस्टेंस फ्रंट के आतंकवादियों ने 26 पर्यटकों की पहलगाम में हत्या कर दी। इसमें मारे गए सभी पुरुष थे और उनका धर्म पूछकर ये हत्याएं की गई।

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