Thursday, October 9, 2025
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IIT दिल्ली ने AI की मदद से बनाए स्मार्ट एयर फिल्टर, क्या और कैसे करेगा काम?

इस रिसर्च में आईआईटी दिल्ली के साथ स्वीडन की यूनिवर्सिटी ऑफ बोरोस, केटीएच रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, एनआईटी रायपुर, बेनेट यूनिवर्सिटी और फारिदाबाद स्थित एलोफिक इंडस्ट्रीज लिमिटेड शामिल थे।

कोविड-19 महामारी के दौरान जब लोग लंबे समय तक घरों और बंद जगहों में रहने को मजबूर हुए, तब साफ और बेहतर इनडोर हवा की जरूरत और भी ज्यादा महसूस हुई। खासकर हीटिंग, वेंटिलेशन और एयर कंडीशनिंग (HVAC) सिस्टम्स में इस्तेमाल होने वाले एयर फिल्टरों को लेकर यह चुनौती सामने आई कि जो फिल्टर ज्यादा प्रदूषक और हानिकारक कणों को रोकते हैं, वे अक्सर हवा के बहाव को भी कम कर देते हैं, जिससे ऊर्जा खपत बढ़ती है और सिस्टम कम प्रभावी हो जाते हैं।

इस चुनौती का समाधान खोजने के लिए आईआईटी दिल्ली के टेक्सटाइल और फाइबर इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अमित रावल की अगुवाई में एक अंतरराष्ट्रीय शोध टीम ने मशीन लर्निंग आधारित फ्रेमवर्क विकसित किया है। इस एआई मॉडल को दुनिया भर से जुटाए गए विविध डाटा पर प्रशिक्षित किया गया।

AI कैसे बनाएगा बेहतर फिल्टर?

यह मॉडल अब दो मुख्य बातों का अनुमान लगा सकता है। पहला, कोई फिल्टर हवा को कितनी अच्छी तरह साफ करता है और दूसरा, फिल्टर के माध्यम से हवा कितनी आसानी से गुजर सकती है। इस विकसित फ्रेमवर्क को फरीदाबाद स्थित कंपनी एलोफिक इंडस्ट्रीज लिमिटेड के औद्योगिक डेटा के साथ परखा गया है। यह सत्यापन दिखाता है कि इस तकनीक में वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों के लिए फिल्टर डिजाइन को निर्देशित करने की पूरी क्षमता है।

इस रिसर्च में आईआईटी दिल्ली के साथ स्वीडन की यूनिवर्सिटी ऑफ बोरोस, केटीएच रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, एनआईटी रायपुर, बेनेट यूनिवर्सिटी और फारिदाबाद स्थित एलोफिक इंडस्ट्रीज लिमिटेड शामिल थे। एलोफिक इंडस्ट्रीज, जो ऑटोमोबाइल और औद्योगिक फिल्टर बनाती है, ने अपने औद्योगिक डाटा से इस मॉडल की टेस्टिंग की। नतीजे बताते हैं कि यह तकनीक असली दुनिया में भी कारगर साबित हो सकती है।

प्रोफेसर रावल ने इस पहल को उद्योग और शिक्षा जगत की साझेदारी का एक मजबूत उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि यह साझेदारी दर्शाती है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) किस तरह नवाचार की गति को बढ़ा सकती है, जिससे स्वच्छ इनडोर हवा, कम ऊर्जा लागत और भविष्य के स्वास्थ्य संकटों के खिलाफ बेहतर तैयारी का रास्ता खुलता है। टीम का अंतिम लक्ष्य है “स्वस्थ इनडोर वातावरण” को स्कूलों और अस्पतालों से लेकर कार्यस्थलों और घरों तक, सभी के लिए सुलभ बनाना।

क्या हैं इस एआई मॉडल की चुनौतियां

हालांकि, प्रो. रावल ने यह भी स्वीकार किया कि एआई मॉडल का उपयोग करने में कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जैसे कि उनकी व्याख्या में कमी, प्रशिक्षण के लिए भारी मात्रा में डेटा की आवश्यकता और महत्वपूर्ण कम्प्यूटेशनल संसाधनों की मांग। इस अध्ययन का शीर्षक “मशीन लर्निंग आधारित रणनीतियाँ: हीटिंग, वेंटिलेशन और एयर-कंडीशनिंग (एचवीएसी) फिल्टर मीडिया के इष्टतम डिजाइन के लिए” है, जो अंतरराष्ट्रीय जर्नल सेपरेशन एंड प्यूरिफिकेशन टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।

इस बीच, आईआईटी दिल्ली द्वारा ही मंगलवार को लॉन्च किए गए एक नए ‘हेल्थ बेनिफिट असेसमेंट डैशबोर्ड’ में बताया गया कि अगर पीएम2.5 प्रदूषण में 30% की कमी लाई जाए तो देश में बीमारियों का औसत प्रचलन वर्तमान 4.87% से घटकर 3.09% तक कम हो सकता है।

सबसे अधिक श्वसन संबंधी संक्रमण में कमी बिहार, दिल्ली, ओडिशा और झारखंड में देखने को मिलेगी। डैशबोर्ड में 641 जिलों को कवर करते हुए 5वीं राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के आंकड़ों के आधार पर पीएम2.5 प्रदूषण और बीमारियों जैसे उच्च रक्तचाप, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD), एनीमिया, हृदय रोग और प्रजनन आयु की महिलाओं (15-49 वर्ष) में मधुमेह के बीच स्पष्ट संबंध दिखाया गया है। इसके अलावा, वायु प्रदूषण का प्रभाव पांच साल से कम उम्र के बच्चों में एनीमिया, कम जन्म वजन और निचले श्वसन संक्रमण पर भी देखा गया है।

अनिल शर्मा
अनिल शर्माhttp://bolebharat.in
दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में उच्च शिक्षा। 2015 में 'लाइव इंडिया' से इस पेशे में कदम रखा। इसके बाद जनसत्ता और लोकमत जैसे मीडिया संस्थानों में काम करने का अवसर मिला। अब 'बोले भारत' के साथ सफर जारी है...
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