Homeसाइंस-टेकIISC के वैज्ञानिकों को मिली बड़ी सफलता, खोजी प्लास्टिक रीयूज की तकनीक

IISC के वैज्ञानिकों को मिली बड़ी सफलता, खोजी प्लास्टिक रीयूज की तकनीक

नई दिल्ली: भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC), बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक पुनर्चक्रण में एक नई सफलता हासिल की है, जिससे उपभोक्ता-पश्चात प्लास्टिक कचरे के पुनः उपयोग के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। यह तकनीक बेकार पड़ी प्लास्टिक बोतलों और अन्य पॉलीओलेफिन-आधारित कचरे को उच्च गुणवत्ता वाली पुनर्नवीनीकृत सामग्री में बदलने में मदद कर सकती है।

पर्यावरण संरक्षण में मददगार तकनीक

प्लास्टिक प्रदूषण आज एक गंभीर वैश्विक समस्या बन चुका है। हर साल लगभग 391 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है, लेकिन मात्र 8% ही पुनर्चक्रण के योग्य होता है। अधिकांश प्लास्टिक या तो लैंडफिल में चला जाता है, जला दिया जाता है या फिर पर्यावरण को प्रदूषित करता है।

आईआईएससी के शोधकर्ताओं ने इस समस्या का समाधान निकालते हुए पीईटी (PET) प्लास्टिक बोतलों को पुनर्चक्रित प्लास्टिक में मिलाने की विधि विकसित की है, जिससे सामग्री की मजबूती और स्थायित्व में सुधार होता है। आईआईएससी के मैटेरियल्स इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर सूर्यसारथी बोस के अनुसार, पुनर्चक्रित प्लास्टिक (Plastic recycling) अक्सर पुनर्चक्रण प्रक्रिया के दौरान भोजन और चिकित्सा अपशिष्ट से दूषित हो जाता है, जिससे इसकी ताकत कम हो जाती है। इस नई तकनीक से इसे सीधे 3डी प्रिंटिंग और अन्य उच्च-प्रदर्शन अनुप्रयोगों में उपयोग किया जा सकता है।

बेहतर गुणवत्ता और बहुउद्देशीय उपयोग

इस विधि में वैज्ञानिकों ने पीईटी प्लास्टिक को छोटे-छोटे घटकों में तोड़कर एक नई प्रक्रिया, मेल्ट एक्सट्रूज़न, का उपयोग किया। इस प्रक्रिया से प्राप्त सामग्री पारंपरिक पुनर्चक्रित प्लास्टिक की तुलना में अधिक मजबूत, टिकाऊ और बार-बार पुनः उपयोग करने योग्य होती है।

शोधकर्ताओं ने इस तकनीक का परीक्षण 3डी प्रिंटिंग स्टार्ट-अप “वोइला 3डी” के साथ मिलकर किया, जिसमें रोबोट 3डी प्रिंटर का उपयोग करके बड़ी और मजबूत संरचनाएं तैयार की गईं। प्रोफेसर बोस के अनुसार, यह तकनीक अपनी तरह की पहली तकनीक है जो पुनर्चक्रित प्लास्टिक को सीधे 3डी प्रिंटिंग में उपयोग करने की अनुमति देती है।

आईआईएससी (IISC) ने इस प्रक्रिया को दूध के पैकेट जैसी अन्य प्लास्टिक सामग्रियों के साथ भी दोहराया और इसके लिए पेटेंट दायर किया है। यह नई पुनर्चक्रण तकनीक भविष्य में प्लास्टिक कचरे को कम करने और पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभा सकती है।

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