सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) पर जूता फेंकने की कोशिश करने वाले वकील राकेश किशोर ने घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्हें अपनी कार्रवाई पर कोई पछतावा नहीं है।
सोमवार सुबह करीब 11.35 बजे जब सीजेआई गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ कोर्ट नंबर 1 में मामलों की सुनवाई कर रही थी, तभी वकील राकेश किशोर ने अपने स्पोर्ट्स शूज उतारने शुरू किए और उन्हें सीजेआई की ओर फेंकने की कोशिश की। हालांकि सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत हस्तक्षेप किया और उन्हें खींच कर बाहर कर दिया। इस दौरान किशोर चिल्ला रहे थे, सनातन का अपमान नहीं सहेंगे!
इस घटना के बाद कोर्ट में अफरातफरी मच गई। घटना के बाद कोर्ट की कार्यवाही कुछ देर रुकी, लेकिन सीजेआई गवई ने शांति बनाए रखी और वकीलों से कहा, ध्यान मत भटकाइए, आगे बढ़िए। बाद में उन्हें कोर्ट परिसर में ही पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया। दिल्ली पुलिस ने बताया कि इस मामले में कोई औपचारिक शिकायत नहीं मिली है।
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस पार्टी ने इस घटना की निंदा की। घटना के बाद हमला करने वाले वकील राकेश किशोर को बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने निलंबित कर दिया है।
‘मैं आहत था… मैं नशे में नहीं था’
राकेश किशोर ने समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहा है कि उन्हें कोई पछतावा नहीं है कि क्या हुआ। राकेश किशोर ने दावा किया कि उनकी नाराजगी उस टिप्पणी को लेकर थी जो कथित रूप से सीजेआई ने खजुराहो के जवरी मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति के पुनर्निर्माण से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के दौरान कही थी।
निलंबित वकील किशोर ने कहा, “मैं आहत था… मैं नशे में नहीं था। मैंने कोई गोली नहीं खा रखी थी। यह मेरी प्रतिक्रिया थी, उनकी टिप्पणी के जवाब में। मुझे कोई डर नहीं है और न ही मुझे जो हुआ उस पर कोई पछतावा है।”
उन्होंने बताया कि उन्होंने 16 सितंबर को मुख्य न्यायाधीश की पीठ में एक जनहित याचिका दाखिल की थी, जिसमें खजुराहो में भगवान विष्णु की मूर्ति के पुनर्निर्माण की मांग की गई थी।
किशोर ने कहा, “सीजेआई ने उस याचिका का मजाक उड़ाते हुए कहा था, ‘जाकर मूर्ति से ही कहो कि वह अपना सिर खुद जोड़ ले।’ लेकिन हम देखते है कि यही चीफ जस्टिस बहुत सारे धर्मों के खिलाफ जब केस आते हैं तो उनको लेकर बड़े कदम उठाते हैं। जैसे हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर एक विशेष समुदाय का कब्जा है। जब उसे हटाने की कोशिश की गई तो सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया। यह तीन साल पहले हुआ जो आज तक लगा हुआ है।
जब नूपुर शर्मा का मामला कोर्ट में आया था, तब कहा गया था कि उसने माहौल बिगाड़ा। लेकिन जब हमारे सनातन धर्म से जुड़ा कोई मामला आता है, तो कोर्ट ऐसे आदेश देती है कि याचिकाकर्ता को राहत भी न मिले और उसका मज़ाक भी बन जाए। यह बात मुझे गहरी लगी।” उन्होंने कहा कि मैंने कोई अपराध नहीं किया। यह मेरी आस्था और अपमान की प्रतिक्रिया थी। मैं न डरा हूं, न पछता रहा हूं।
16 सितंबर को क्या हुआ था?
दरअसल, 16 सितंबर को मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने मध्य प्रदेश के खजुराहो स्थित जवारि मंदिर में भगवान विष्णु की खंडित मूर्ति की मरम्मत और रखरखाव का आदेश देने से जुड़ी अर्ज़ी खारिज कर दी थी।
बेंच ने कहा था कि यह मामला अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं बल्कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन आता है। अदालत ने इस याचिका को “पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन” बताते हुए याचिकाकर्ता से कहा था, “अगर आप भगवान विष्णु के इतने बड़े भक्त हैं, तो उनसे ही प्रार्थना करें और थोड़ा ध्यान लगाएं।”
मुख्य न्यायाधीश की इस टिप्पणी के बाद विवाद खड़ा हो गया। विश्व हिंदू परिषद ने सीजेआई को सलाह दी कि उन्हें अपनी वाणी में संयम बरतना चाहिए।
इसके बाद, जब इस याचिका की अगली सुनवाई हुई तो सीजेआई गवई ने कोर्ट में स्पष्टीकरण दिया। उन्होंने कहा, “सोशल मीडिया पर आजकल कुछ भी चल सकता है। किसी ने मुझसे कहा कि मैंने अपमानजनक टिप्पणी की है, लेकिन ऐसा नहीं है। मैं सभी धर्मों में विश्वास रखता हूं और उनका सम्मान करता हूं।”
इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा, “मैं सीजेआई को पिछले दस वर्षों से जानता हूं। वे सभी धर्मों के मंदिरों और तीर्थ स्थलों पर पूरी श्रद्धा से जाते हैं।”
मुख्य न्यायाधीश ने अंत में स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणी का आशय केवल इतना था कि यह मामला एएसआई के अधिकार क्षेत्र में आता है और अदालत उसमें दखल नहीं दे सकती।
पीएम मोदी ने घटना की निंदा की
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घटना पर मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई से बात की है। उन्होंने एक्स पर लिखा, “मैंने भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई जी से बात की। सुप्रीम कोर्ट परिसर में उन पर हुए हमले से हर भारतीय आक्रोशित है। हमारे समाज में ऐसे निंदनीय कृत्यों की कोई जगह नहीं है। यह पूरी तरह अस्वीकार्य और शर्मनाक है।”
कई वरिष्ठ वकीलों और बार एसोसिएशन ने इस घटना की निंदा की है और इसे न्यायपालिका पर हमला बताया है। उनका कहना है कि असहमति जताने का यह तरीका गलत है और अदालत की गरिमा बनाए रखना हर वकील का कर्तव्य है।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा ने कहा कि यह कृत्य “न्यायालय की गरिमा के विपरीत और अधिवक्ता आचार संहिता का उल्लंघन” है। उन्होंने इसे एडवोकेट्स एक्ट, 1961 और बार काउंसिल ऑफ इंडिया नियमों का सीधा उल्लंघन बताया।
काउंसिल ने अपने बयान में कहा, “प्रथम दृष्टया मिले साक्ष्यों से स्पष्ट है कि 6 अक्टूबर 2025 को सुबह करीब 11:35 बजे सुप्रीम कोर्ट की कोर्ट नंबर 1 में अधिवक्ता राकेश किशोर ने कार्यवाही के दौरान अपने स्पोर्ट्स शूज उतारकर उन्हें माननीय मुख्य न्यायाधीश की ओर फेंकने का प्रयास किया, जिस पर सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत हस्तक्षेप किया।”
बार काउंसिल ने कहा कि इस तरह का व्यवहार पूरी तरह अस्वीकार्य है और यह अदालत की मर्यादा को ठेस पहुंचाता है। फिलहाल यह कार्रवाई अस्थायी है आगे की जांच के बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
कौन हैं सीजेआई पर हमले की कोशिश करने वाले वकील राकेश किशोर?
राकेश किशोर दिल्ली के मयूर विहार में रहते हैं और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पंजीकृत सदस्य हैं। उन्होंने 2009 में दिल्ली बार काउंसिल में अपना नाम दर्ज कराया था। वे लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन, शाहदरा बार एसोसिएशन और अन्य वकील संघों से जुड़े रहे हैं। कानूनी बिरादरी में वे कई बार एसोसिएशनों से लंबे समय से जुड़े वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में जाने जाते हैं।