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अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर हाई कोर्ट का बड़ा आदेश, ऑडिट पर लगाई रोक, यह है वजह

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने अजमेर शरीफ दरगाह के खातों के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा प्रस्तावित अंकेक्षण पर अंतरिम रोक लगा दी है। जस्टिस सचिन दत्ता ने राजस्थान के अजमेर स्थित अंजुमन मोइनिया फखरिया चिश्तिया खुद्दाम ख्वाजा साहब सैयदजादगान दरगाह शरीफ और एक अन्य पंजीकृत सोसायटी की याचिकाओं पर अंतरिम रोक लगाई। न्यायालय ने 14 मई के अपने आदेश में याचिकाकर्ताओं की इस दलील को प्रामाणिक पाया कि मामले में कैग अधिनियम की धारा 20 के तहत आवश्यक शर्तें पूरी नहीं की गईं। यह प्रावधान कुछ प्राधिकरणों या निकायों के खातों के अंकेक्षण से संबंधित है।

इक्कीस मई को उपलब्ध कराए गए आदेश में कहा गया है, ‘‘कैग की ओर से पेश अधिवक्ता ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता का अंकेक्षण अभी तक शुरू नहीं हुआ है… अंतरिम उपाय के तौर पर यह निर्देश दिया जाता है कि 30 जनवरी 2025 के पत्राचार के आधार पर कैग द्वारा सुनवाई की अगली तारीख तक कोई और कदम नहीं उठाया जाएगा।’’

अगली सुनवाई 28 जुलाई को 

इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई तय की।कैग ने दरगाह के खातों के अंकेक्षण की अपनी प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि उसने कानून की प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया है। अदालत उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें आरोप लगाया गया था कि बिना किसी नोटिस या सूचना के कैग अधिकारियों द्वारा याचिकाकर्ताओं के कार्यालय परिसर में अवैध तलाशी ली गई या दौरा किया गया, जो नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कर्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 और सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के प्रावधानों के विपरीत है।

कैग ने अपने जवाब में कहा कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने 14 मार्च, 2024 को याचिकाकर्ता को पहले ही सूचित कर दिया था कि दरगाह मामलों के प्रबंधन में सुधार के लिए केंद्रीय प्राधिकरण ने एक अंकेक्षण का प्रस्ताव किया है और इस तरह के अंकेक्षण के खिलाफ अभ्यावेदन का अवसर प्रदान किया है। कैग ने कहा कि भारत के राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गयी है और वित्त मंत्रालय ने इस वर्ष 30 जनवरी को एक पत्र के माध्यम से कैग को इसकी जानकारी दे दी थी।

अजमेर शरीफ दरगाह के खातों के कैग अंकेक्षण पर अंतरिम रोक लगाई

हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि ऐसे अंकेक्षण के लिए कैग अधिनियम में निर्धारित अनिवार्य वैधानिक प्रक्रिया के अनुसार संबंधित मंत्रालय को कैग को एक पत्र भेजना चाहिए।

इसमें कहा गया है कि पत्र में याचिकाकर्ता सोसायटी का कैग द्वारा अंकेक्षण कराने की मांग की जानी चाहिए, इसमें इस बात का भी जिक्र किया जाना चाहिए कि किन नियमों एवं शर्तों के आधार पर अंकेक्षण किया जाना है, इतना ही नहीं उन नियमों एवं शर्तों पर कैग और संबंधित मंत्रालय के बीच सहमति होनी चाहिए तथा तत्पश्चात याचिकाकर्ता को नियम व शर्तें बताई जानी चाहिए, जिसके बाद वह संबंधित मंत्रालय के समक्ष अपना अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का हकदार होगा। इसके अलावा, अंकेक्षण की शर्तों पर सहमति से पहले राष्ट्रपति या राज्यपाल की स्वीकृति भी आवश्यक है।

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