नई दिल्लीः अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा को लेकर कड़ा फैसला लेते हुए एक प्रोक्लमेशन (अधिसूचना) पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत अब नई एच-1बी वीजा अर्जी पर 1 लाख डॉलर (करीब 83 लाख रुपये) की फीस चुकानी होगी। इस घोषणा के बाद, अमेरिका में भारतीय दूतावास ने फौरन एक आपातकालीन सहायता नंबर जारी किया, ताकि जरूरत पड़ने पर भारतीय नागरिकों को तुरंत मदद मिल सके।
दूतावास ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, आपातकालीन सहायता चाहने वाले भारतीय नागरिक +1-202-550-9931 पर संपर्क कर सकते हैं। दूतावास ने स्पष्ट किया कि यह नंबर सिर्फ आपात सहायता के लिए है, नियमित वीजा या कांसुलर सवालों के लिए नहीं।
ट्रंप प्रशासन के इस फैसले ने भारतीय पेशेवरों, खासकर टेक सेक्टर में काम करने वालों के बीच गहरी चिंता पैदा कर दी है, क्योंकि कुल एच-1बी वीजा का लगभग 71 प्रतिशत हिस्सा भारतीय नागरिकों को मिलता है। यह शुल्क 21 सितंबर की रात 12:01 बजे से प्रभावी हो गया है। इसे एक साल के लिए लागू किया गया है, लेकिन ट्रंप प्रशासन यदि चाहे तो इसे बढ़ा सकता है।
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अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लटनिक ने इस कदम का बचाव करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य तकनीकी कंपनियों को अमेरिकी श्रमिकों की जगह विदेशियों को काम पर रखने से रोकना है। उन्होंने कहा कि यह नियम सुनिश्चित करेगा कि कंपनियां विदेश से लोगों को लाकर अमेरिकियों की नौकरियां न छीनें।
मौजूदा वीजा धारकों पर भी लागू होगा शुल्क, व्हाइट हाउस ने क्या कहा?
ट्रंप प्रशासन की घोषणा ने बड़े पैमाने पर भ्रम पैदा कर दिया था। अधिसूचना में यह स्पष्ट नहीं था कि शुल्क मौजूदा वीजा धारकों पर भी लागू होगा या नहीं। हालांकि, बाद में व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने समाचार एजेंसी आईएएनएस को स्पष्ट किया कि यह शुल्क केवल नए एच-1बी वीजा आवेदनों पर लागू होगा, न कि उन लोगों पर जो पहले से वीजा धारक हैं या जो रिनुअल कराना चाहते हैं। अधिकारी ने इसे एक बार का शुल्क बताया, जो आगामी लॉटरी चक्र से लागू होगा।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलीन लीविट ने भी एक्स पर पोस्ट कर यह साफ किया कि जो लोग अभी देश से बाहर हैं, उन्हें दोबारा अमेरिका में प्रवेश करने के लिए यह शुल्क नहीं देना होगा। यह सफाई मौजूदा वीजा धारकों के लिए एक बड़ी राहत मानी जा रही है।
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प्रमुख इमिग्रेशन लॉ फर्म रेड्डी न्यूमैन ब्राउन पीसी के पार्टनर स्टीवन ब्राउन ने इसे ट्रंप प्रशासन द्वारा अपने रुख से पीछे हटना बताया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित घोषणापत्र में नए और मौजूदा वीजा धारकों के बीच कोई अंतर नहीं किया गया था, जिससे यह भ्रम की स्थिति पैदा हुई। उन्होंने यह भी कहा कि इस घोषणापत्र को अदालत में चुनौती दी जा सकती है और इस मामले में कई मुकदमे दायर किए जाने की संभावना है।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी इस कदम का संज्ञान लिया है और कहा है कि वह इसके दूरगामी परिणामों का अध्ययन कर रहा है। मंत्रालय ने चिंता जताई है कि इस फैसले से न सिर्फ आर्थिक, बल्कि परिवारों के लिए मानवीय चुनौतियां भी खड़ी हो सकती हैं।
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