अहमदाबाद: गुजरात सरकार ने बुधवार को विधानसभा में स्वीकार किया कि पिछले दो सालों में 307 एशियाई शेरों की मौत हुई है। जबकि इन मौतों को रोकने के लिए 37.35 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।
बता दें कि एशियाई शेर दुनिया में केवल गुजरात में पाए जाते हैं। हालांकि हाल के वर्षों में इनकी लगातार होती मौतें राज्य की संरक्षण रणनीतियों पर गंभीर सवाल खड़े करती है। अगस्त महीने के शुरुआत में ही 10 दिनों में चार एशियाई शेरों के मरने की खबरें आई थीं जिसमें तीन शावक और एक शेरनी शामिल थे।
बढ़ती आबादी के बावजूद मौतों में इजाफा
13 मई 2025 को हुई 16वीं एशियाई शेर जनगणना के अनुसार, गुजरात के सात जिलों में 891 शेर हैं, जिनमें सबसे ज्यादा अमरेली (339) में हैं। हालाँकि पिछले दो सालों में 307 शेरों की मौत हुई हैं।
साल 2023-24 के बीच 141 शेरों की मौत हुई, जिनमें से 60 की मौत बीमारी से, 38 की आपसी लड़ाई से और 24 की बुढ़ापे से हुई। इस दौरान, 7 शेर खुले कुओं में गिर गए, 5 ट्रेन से टकराकर मरे, 3 डूब गए और 1 की मौत सड़क दुर्घटना व 1 की बिजली का झटका लगने से हुई।
इसी तररह साल 2024-25 के बीच मौतों का आंकड़ा बढ़ गया। इस दौरान 166 एशियाई शेरों की मौत हुई। बताया गया 81 शेर बीमारी से मर गए जो 35% की बढ़ोतरी थी। खुले कुओं में गिरकर 13 शेरों की मौत हुई, जो पिछले साल से लगभग दोगुना था।
सबसे ज्यादा मौतों का असर अमरेली जिले में देखा गया, जहाँ सबसे ज्यादा शेर होने के बावजूद यह उनकी कब्रगाह बन गया है। जनवरी से जुलाई 2025 के बीच, अकेले इस जिले में 31 शेरों की मौत हुई, जिनमें 14 शावक भी शामिल थे। इनमें से ज्यादातर मौतें ऐसी बीमारियों से हुईं, जिनका समय पर इलाज किया जा सकता था।
करोड़ों का खर्च, फिर भी संरक्षण विफल
इन मौतों के बावजूद, गुजरात सरकार का कहना है कि उसने संरक्षण पर भारी निवेश किया है। पिछले दो सालों में, 2023-24 में 20.35 करोड़ रुपये और 2024-25 में 17 करोड़ रुपये, कुल 37.35 करोड़ रुपये खर्च किए गए। लेकिन बढ़ती हुई मौतों की संख्या एक अलग कहानी बयां करती है।
बता दें कि इस संकट का असर सिर्फ गुजरात पर ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। एशियाई शेर एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति हैं और गुजरात उनका एकमात्र प्राकृतिक आवास है।
कहाँ है सुप्रीम कोर्ट का आदेश?
सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एक आदेश दिया था, जिसमें एशियाई शेरों को गिर से मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया गया था। इसका मकसद शेरों की दूसरी आबादी बनाना था, ताकि महामारी या आपदाओं से उनके विलुप्त होने का जोखिम कम हो सके। लेकिन 12 साल बाद भी, यह आदेश कागज पर ही है।
गुजरात के अधिकारी इस कदम का विरोध करते रहे हैं। उनका तर्क है कि राज्य की संरक्षण रणनीति सफल रही है और वे अपने यहाँ के शेरों पर गर्व करते हैं। वे 2,900 करोड़ के प्रोजेक्ट लायन और गुजरात के भीतर ही बर्दा वन्यजीव अभयारण्य में शेरों को स्थानांतरित करने जैसी पहलों का हवाला देते हैं।
हालाँकि, विशेषज्ञ कहते हैं कि बर्दा का छोटा आकार और शिकार की कमी इसे एशियाई शेरों के लिए उपयुक्त नहीं बनाती, जबकि कूनो एक बेहतर दीर्घकालिक समाधान है। दूसरी तरफ, गुजरात का वन विभाग शेरों की बढ़ती आबादी और मानव-वन्यजीव सह-अस्तित्व के अपने मॉडल पर जोर देता है।