Saturday, October 11, 2025
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चंपई सोरेन झामुमो से रिश्ता तोड़ अलग राह पर, बनाएंगे नई पार्टी! हेमंत सोरेन की बढ़ेंगी मुश्किलें…

रांचीः भाजपा में जाने की चर्चाओ के बीच झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने बुधवार अलग पार्टी बनाने के संकेत दे दिए। चंपई सोरेन ने तीन विकल्पों की बात की थी जिनमें राजनीति से संन्यास लेना, नई पार्टी शुरू करना या किसी दल में शामिल होना था।

चंपई ने बुधवार को कहा कि वे राजनीति से संन्यास नहीं लेंगे। अपने हजारों समर्थकों से मुलाकात और बातचीत के बाद उन्होंने तय किया है कि वो या तो अपना नया राजनीतिक संगठन बनाएंगे या फिर रास्ते में कोई अच्छा दोस्त मिल जाए तो उसके साथ चल पड़ेंगे।

झामुमो के साथ नहीं रहेंगे चंपई

कोल्हान टाइगर के नाम से मशहूर चंपई मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके परिवार के सबसे करीबी नेताओं में से एक रहे हैं। हेमंत के पिता शिबू सोरेन के साथ वे झारखंड आंदोलन के समय से ही जुड़े रहे। पार्टी में भी उनका कद काफी बड़ा रहा है। लेकिन अब उन्होंने हेमंत सोरेन से सारे रिश्ते तोड़ लिए हैं।

अपने गांव जिलिंगगोड़ा में पत्रकारों से चंपई ने कहा कि सरकार में उनके साथ जो कुछ हुआ और जिन स्थितियों का सामना करना पड़ा, उसके बारे में वह सोशल मीडिया पर विस्तार से बता चुके हैं। वह अपनी बात पर कायम हैं। अब उनका रास्ता अलग होगा।

चंपई सोरेन दिल्ली के तीन दिनों के प्रवास के बाद मंगलवार देर रात कोलकाता होते हुए अपने गांव पहुंचे थे। इस दौरान रास्ते में उन्होंने जगह-जगह अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं के साथ मुलाकात की। बुधवार को भी सुबह से ही उनके आवास पर बड़ी संख्या में लोगों का जमावड़ा लगा रहा।

उन्होंने समर्थकों-कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि उनके मन में राजनीति से संन्यास लेने का ख्याल आया था, लेकिन आपने जिस तरह हजारों की संख्या में आगे आकर मुझे हौसला दिया है, उसके बाद मैंने यह विचार त्याग दिया है।

झारखंड प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने चंपई सोरेन के भाजपा में शामिल होने के बारे में पूछे जाने पर कहा, “हम चंपई सोरेन के भाजपा में आने का ना आग्रह करेंगे, ना अनुरोध। चंपई सोरेन बहुत समझदार हैं। वे अपनी मंजिल ढूंढ लेंगे। वे संघर्षशील रहे हैं। सही राह पर ही आगे चलेंगे। साथी ढूंढ रहे हैं तो सही साथी ढूंढ लेंगे।”

बेदाग रही है छवि

चंपई सोरेन की छवि बेदाग रही है।  राजनीति में उनका पदार्पण साल 1991 में हुआ। इसी साल सरायकेला सीट के लिए हुए उपचुनाव में उन्होंने पहली बार जीत हासिल की विधायक बने। इसके बाद वे 1995 में फिर चुनाव जीते लेकिन साल 2000 में वह चुनाव हार गए। लेकिन 2005 में फिर से चंपई विधायक चुने गए और उसके बाद वे कोई चुनाव नहीं हारे।

संताल जनजाति के बड़े नेता

2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में संताल समुदाय की आबादी 27 लाख 54 हजार 723 लाख है। 10वीं तक पढ़े चंपई झारखंड के बड़े संताल जनजाति के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं। झारखंड के 82 विधानसभा सीटों में से 28 आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं। इन रिजर्व सीटों में संताल समुदाय के आदिवासी विधायक ही रहते हैं। झामुमो का कोर वोट भी यही समुदाय माना जाता है। 2019 में हुए विधानसभा चुनाव की बात करें तो रिजर्व सीटों में से 26 सीटों पर झामुमो और कांग्रेस गठबंधन ने जीत दर्ज की थी।

झारखंड विधानसभा का कार्यकाल 5 जनवरी 2025 को पूरा हो रहा है। साल के आखिर में चुनाव होने की संभावना है। माना जा रहा है कि अगर चंपई अलग पार्टी बनाते हैं या फिर किसी दल में जाते हैं तो कोल्हान क्षेत्र और उसके आसपास की सीटों को प्रभावित कर सकते हैं। क्योंकि कोल्हान झामुमो का गढ़ कहा जाता है जिसके रणनीतिकार चंपई माने जाते हैं।

बता दें कि कोल्हान में सरायकेला, पूर्वी सिंहभूम और पश्चिमी सिंहभूम जैसे जिले आते हैं। इन तीन जिलों में विधानसभा की 14 सीटें हैं। इन सीटों पर झामुमो का ही दबदबा रहा है।

3 जुलाई को मुख्यमंत्री पद से चंपई ने दिया था इस्तीफा

चंपई सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री बने, जब हेमंत सोरेन को 31 जनवरी को प्रवर्तन निदेशालय ने कथित भूमि घोटाले के मामले में गिरफ्तार किया था। झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा हेमंत सोरेन को जमानत दिए जाने के बाद उन्होंने 3 जुलाई को पद से इस्तीफा दे दिया।

चंपई सोरेन ने 18 अगस्त को एक पोस्ट में कहा, “मैं अंदर से टूट चुका था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। दो दिनों तक मैं चुपचाप बैठा रहा और आत्मचिंतन करता रहा। पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा। मुझे सत्ता का जरा भी लालच नहीं था, लेकिन मैं अपने स्वाभिमान पर हुए इस आघात को किससे दिखा सकता था? मैं अपने ही लोगों द्वारा दिए गए दर्द को कहां व्यक्त कर सकता था?”

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