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‘बिना धन के मुमकिन नहीं था’, FATF ने पहलगाम आतंकी हमले की निंदा की, निगरानी बढ़ाई

अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले पर आतंकी वित्त निगरानी संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF)  ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। 22 अप्रैल को हुए इस हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई थी। FATF ने इसे “धन के बिना संभव न होने वाला हमला” करार देते हुए आतंक वित्तपोषण की वैश्विक निगरानी और सख्ती बढ़ाने का ऐलान किया है।

पेरिस स्थित FATF ने अपने आधिकारिक बयान में कहा, “ऐसे हमलों को अंजाम देने के लिए न केवल संसाधनों की आवश्यकता होती है, बल्कि आतंक समर्थकों के बीच धन स्थानांतरण की क्षमता भी जरूरी होती है।”

यह पहली बार है जब FATF ने किसी भारतीय आतंकी हमले का नाम लेकर निंदा की है, जो न केवल भारत की कूटनीतिक कोशिशों को बल देता है, बल्कि पाकिस्तान की भूमिका को लेकर भारत द्वारा उठाए जा रहे सवालों को भी वैश्विक मान्यता दिलाता है।

पाकिस्तान पर फिर बढ़ेगी अंतरराष्ट्रीय निगरानी की तलवार

FATF का यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान द्वारा आतंकियों को पनाह देने और विदेशी वित्तीय सहायता को हथियारों की खरीद में इस्तेमाल करने की बात उठा रहा है। समाचार एजेंसी PTI के मुताबिक, भारत अगस्त में होने वाली एशिया-पैसिफिक ग्रुप (APG) की बैठक और अक्टूबर में FATF की प्लेनरी वर्किंग ग्रुप में पाकिस्तान को दोबारा ‘ग्रे लिस्ट’ में डालने की औपचारिक मांग करेगा।

2018 से 2022 तक पाकिस्तान पहले भी FATF की ग्रे लिस्ट में था, लेकिन बाद में उसे यह कहते हुए सूची से हटा दिया गया कि उसने आतंक वित्त के खिलाफ पर्याप्त कदम उठाए हैं। भारत का तर्क है कि पाकिस्तान ने उस दौरान की गई प्रतिबद्धताओं को पूरी तरह नहीं निभाया।

नई तकनीकों और टूल्स के जरिए आतंकी नेटवर्क सक्रिय

FATF ने चेताया है कि आतंक समूह अब पारंपरिक सिस्टम से बचने के लिए सोशल मीडिया, क्राउडफंडिंग, एनजीओ और क्रिप्टोकरेंसी जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह नई रणनीति वैश्विक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है।

FATF जल्द ही आतंक वित्त के वैश्विक पैटर्न पर एक रिपोर्ट प्रकाशित करेगा, जिसमें कई देशों के मामलों का अध्ययन किया जाएगा। इसके साथ ही एक वेबिनार आयोजित कर सरकारी और निजी संस्थानों को उभरते खतरों से सतर्क किया जाएगा।

भारत ने पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों की भूमिका पर भी उठाए सवाल

भारत ने 7 मई को भारतीय सेना द्वारा मारे गए आतंकियों के जनाजों में पाकिस्तानी सेना के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी का हवाला देते हुए पाकिस्तान की आतंक से सहानुभूति की मिसाल पेश की है। इसके जरिए भारत यह दिखाना चाहता है कि पाकिस्तान न केवल आतंकी गतिविधियों को सह देता है, बल्कि उसमें सक्रिय रूप से भाग भी लेता है।

पहलगाम आतंकी हमले की जांच में आतंकियों के पाकिस्तान से संचार नेटवर्क का पता चला। द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) नामक समूह ने, जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा है, इस हमले की जिम्मेदारी ली थी। हालांकि, बाद में उसने वह पलट गया था।

भारत ने मई और नवंबर 2024 में संयुक्त राष्ट्र की 1267 प्रतिबंध समिति की निगरानी टीम को अर्ध-वार्षिक रिपोर्ट में टीआरएफ के बारे में जानकारी दी थी, जिसमें पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों के लिए एक आवरण के रूप में इसकी भूमिका को सामने लाया गया था।

इससे पहले, दिसंबर 2023 में भारत ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के बारे में जानकारी दी थी, जो टीआरएफ जैसे छोटे आतंकी समूहों के माध्यम से काम कर रहे हैं। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान विदेश मंत्रालय (एमईए) ने 25 अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रेस वक्तव्य में टीआरएफ के संदर्भों को हटाने के लिए पाकिस्तान के दबाव को उजागर किया था।

एफएटीएफ ने, जो मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकी वित्तपोषण और सामूहिक विनाश के हथियारों के वित्तपोषण के खिलाफ वैश्विक वित्तीय प्रणाली की रक्षा के लिए नीतियां बनाता और बढ़ावा देता है, पहले स्वीकार किया है कि भारत 1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से लगातार आतंकवाद के प्रभावों से पीड़ित रहा है और अब भी विविध आतंकी खतरों का सामना करता है, जिन्हें अलग-अलग क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है।

फएटीएफ अध्यक्ष ने म्यूनिख में हाल ही में आयोजित ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन में बताया, कोई अकेली कंपनी, प्राधिकरण या देश इस चुनौती का सामना अकेले नहीं कर सकता। हमें वैश्विक आतंकवाद के खतरे के खिलाफ एकजुट होना होगा क्योंकि आतंकवादियों को अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए केवल एक बार सफल होने की जरूरत होती है, जबकि हमें इसे रोकने के लिए हर बार सफल होना पड़ता है।”

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