Friday, October 10, 2025
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केरलः अत्यधिक डाइटिंग की वजह से कन्नूर में लड़की की मौत

कन्नूरः केरल के कन्नूर जिले में अत्यधिक डाइटिंग का पालन करने की वजह से एक लड़की की जान चली गई। ऐसा बताया जा रहा है कि वह वजन घटाने को लेकर यूट्यूब पर देखी गई एक डाइट का पालन कर रही थी। मृतक लड़की एम श्रीनंदा कन्नूर जिले के कुथुपरंबा की रहने वाली थी। वह कथित तौर पर कई महीनों से पानी पीकर ही जीवित थी जिस कारण उसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो गईं। 

मृतक लड़की मट्टनूर के पजहस्सी राजा एनएसएस कॉलेज में प्रथम वर्ष की छात्रा थी। उसे एक हफ्ते पहले थालेसरी को-ऑपरेटिव अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसे अधिक थकान और उल्टी के लक्षण आ रहे थे। उसे वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था जहां शनिवार को उसकी मृत्यु हो गई। 

श्रीनंदा का इलाज करने वाले डॉक्टर नागेश प्रभु ने पुष्टि की कि वह एनोरेक्सिया नर्वोसा नामक बीमारी से पीड़ित थी। यह एक गंभीर बीमारी है जिसमें वजन बढ़ने का डर रहता है। 

डॉक्टर के मुताबिक, वह लगभग छह महीने से भूखी रह रही थी। मेरे एक सहयोगी ने उसके परिवार को सलाह दी थी कि उसे किसी मनोचिकित्सक को दिखाएं। लेकिन उन लोगों ने स्थिति की गंभीरता को नहीं समझा। 

क्या है एनोरेक्सिया नर्वोसा? 

एनोरेक्सिया नर्वोसा एक जटिल डिसऑर्डर है जो न सिर्फ खाने की आदतों पर प्रभाव डालती है बल्कि इसकी गहरी मनोवैज्ञानिक जड़ें भी हैं। डॉक्टर के मुताबिक, मरीजों को इस बीमारी में भूख का अहसास नहीं होता है। डॉक्टर ने बताया कि श्रीनंदा के मामले में सोडियम और शुगर का स्तर इतना अधिक गिर गया था कि उसे ठीक नहीं किया जा सका। 

हालांकि इस तरह से अधिकतर मामले पश्चिमी देशों में देखे गए हैं लेकिन विशेषज्ञों ने भारतीयों को आगाह किया है खासकर केरल को क्योंकि इस राज्य में इस तरह के मामले देखे जा रहे हैं। इसकी प्रमुख वजह सोशल मीडिया द्वारा प्रचारित अवास्तविक शारीरिक मानकों का होना है। 

श्रीनंदा का मामला कोई इकलौता मामला नहीं है। ऐसे कई मामले देखे गए जिसमें बच्चे और किशोरों ने वजन बढ़ने के डर से चरम उपाय अपनाए हैं। 

मनोचिकित्सकों के मुताबिक, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म साइज जीरो फिगर को लेकर बहुत महिमामंडन करते हैं। इसका असर बच्चों और किशोरों पर पड़ता है। 

इस बीमारी के इलाज के लिए मनोचिकित्सा, दवा, पोषण संबंधी परामर्श दिए जाते हैं। वहीं, गंभीर मामलों में अस्पताल में भर्ती कराया जाता है। डॉक्टर्स के मुताबिक, इसकी रिकवरी संभव है लेकिन इसके लिए लगातार चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक सहायता की जरूरत होती है। 

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