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राज की बातः जब डीजीपी के फोन पर भी IG-DIG कैप पहनकर सैल्यूट करते थे

करीब 40 साल पहले गुजरात में डीजीपी मनमोहन सिंह का इतना खौफ था कि अधिकारी भी उनसे कांपते थे। बम धमाकों, हत्याओं और दंगों के बीच वे अचानक घटनास्थल पहुंच जाते, जांच में ढिलाई पकड़ते और अधिकारियों को…

यह कहानी करीब चालीस साल पुरानी है। गुजरात में आरक्षी महानिदेशक (डीजीपी) का आतंक इतना था कि उनसे कनिष्ठ पुलिस अधिकारी फोन पर ही पहले कैप धारण करते और साहेब को सलाम मारते। उस समय मोबाइल नहीं होता था।

डीजीपी मनमोहन सिंह का भय अधिकारियों में काफी था। एक बार सौराष्ट्र में संक्षिप्त अंतराल में तीन विभिन्न स्थानों पर बम विस्फोट, चाकूबाजी और गोलीबारी में तीन बड़े नेताओं की हत्या हो गई थी। कांग्रेस के स्वास्थ्य मंत्री वल्लभ भाई पटेल को उनके निर्वाचन क्षेत्र पदधारी में एक सार्वजनिक समारोह में चाकुओं से हमला कर हत्या कर दी गई। पंद्रह अगस्त को झंडा फहराने के बाद जनसभा में स्थानीय विधायक पोपट भाई पटेल की, स्थानीय प्रखंड नेता ने एसडीओ और डिप्टी एसपी की उपस्थिति में हत्या कर दी। तुरंत ही बैंकनर में कांग्रेस विधायक मोहम्मद हुसैन पीरजादा को उनके घर पर ही बम से उड़ा दिया गया।

समीप में जूनागढ़ में एक विशेष समुदाय पर बम विस्फोट किया गया। इसी जिले में मांगरोल में शिया और सुन्नी का हिंसक दंगा हुआ, जिसमें 13 लोग मारे गए।

मनमोहन सिंह काफी परेशान थे और सभी जगह तुरंत सड़क मार्ग से ही पहुंच जाते। मांगरोल दंगा के दूसरे दिन, बिना किसी को अग्रिम सूचना दिए, सिंह साहेब जूनागढ़ पहुंच गए और सर्किट हाउस में ताज़ा होने के लिए रुके। वे काउंटर पर रजिस्टर में अपनी एंट्री लिख रहे थे कि उनकी नजर वहीं रखे गुजरात के लोकप्रिय संध्या दैनिक पर पड़ी। पहले पन्ने पर ही 1972 बैच के आईपीएस अधिकारी, जो जिला कप्तान थे, की फोटो छपी थी। तभी एसपी वहां आ गए। सिंह साहेब ने उनके सलाम का जवाब देते हुए कहा, “तुम तो बिल्कुल दिलीप कुमार लग रहे हो, अपनी सायरा बानो को भी साथ में रख फोटो अखबार में छपवा देते।”

एक और रोचक प्रसंग आया। सिंह साहेब ने तीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों की ड्यूटी मोरबी में विधायक की हत्या की जांच के लिए लगाई। आईजी, डीआईजी और ग्रामीण एसपी भी प्रारंभिक जांच के बाद लौटने लगे। तीनों अधिकारी पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और राजस्थान मूल के थे और घर का बना भोजन मिस कर रहे थे। सिंह साहेब यहां भी गांधीनगर, अहमदाबाद या राजकोट में बताए बिना मोरबी पहुंच गए और तीनों अधिकारियों को वहां नहीं पाया। तभी ये अधिकारी अपने जूते ही खोल रहे थे कि वायरलेस से संदेश मिला- डीजीपी साहेब आप लोगों को खोज रहे हैं। रात में इन अधिकारियों को लौटना पड़ा और सभी ने एक ही स्पष्टीकरण दिया- “हम लोग घटना स्थल पर जांच के लिए गए थे और हाईवे के ढाबे पर खाना खा लिया।”

उस समय समुद्र रास्ते से भी दुबई से सोना स्मगलिंग होता था। जामनगर जिले के जम खंभालिया तट से आया सोने का कंसाइनमेंट पकड़ा गया था। उसे पकड़ने (सीजर) का श्रेय लेने के लिए कस्टम्स सुपरिटेंडेंट, एडिशनल एसपी और जिला एसपी में होड़ लग गई। विश्वनाथ प्रताप सिंह जब वित्त मंत्री थे तब उन्होंने एक योजना निकाली जिसके अनुसार सोना पकड़ने वाले अधिकारी को कुल मूल्य का दस प्रतिशत पुरस्कार के रूप में दिया जाता था।

सौराष्ट्र के आईजी साहेब सपत्नीक स्थानीय थाना में पधारे। एसपी की पत्नी की गाड़ी से उतर कर सोने की बिस्कुट से तैयार पुल पर चढ़कर वे लोग थाने में गए। सभी लोग आशा लगाए बैठे थे कि उनके साहेब को पुरस्कार राशि मिलेगी। लेकिन बड़े साहेब ने अपने स्तर पर जांच कराई और किसी भी अधिकारी को पुरस्कार योग्य नहीं पाया। कारण यह था कि सोने की नाव को एक मछुआरे ने पकड़ा था।

लव कुमार मिश्र
लव कुमार मिश्र, 1973 से पत्रकारिता कर रहे हैं,टाइम्स ऑफ इंडिया के विशेष संवाददाता के रूप में देश के दस राज्यों में पदस्थापित रह। ,कारगिल युद्ध के दौरान डेढ़ महीने कारगिल और द्रास में रहे। आतंकवाद के कठिन काल में कश्मीर में काम किए।

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