नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद चुनाव आयोग (EC) ने बिहार में जारी विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के लिए आधार कार्ड को पहचान प्रमाण पत्र के रूप में मान्यता दी है। चुनाव आयोग ने बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को इसके लिए निर्देश जारी किए हैं। इससे पहले चुनाव आयोग ने इसके लिए 11 दस्तावेजों की सूची जारी की थी जिसमें आधार कार्ड शामिल नहीं था।
चुनाव आयोग ने निर्देशों में स्पष्ट किया है कि आधार को सिर्फ पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाएगा। इसे नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जाएगा। इसके लिए आधार अधिनियम की धारा-9 का भी उल्लेख किया गया है।
चुनाव आयोग ने निर्देशों में क्या कहा?
इसमें कहा गया है कि “जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1950 की धारा 23 (4) आधार कार्ड को पहले से ही किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से सूचीबद्ध दस्तावेजों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।”
चुनाव आयोग ने बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को निर्देश दिया कि वे इन्हें सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों, निर्वाचन अधिकारियों और सहायक निर्वाचन अधिकारियों तथा अन्य संबंधित अधिकारियों के संज्ञान में लाएं, ताकि इनका सख्ती से क्रियान्वयन किया जा सके।
इसमें आगे यह भी कहा गया है कि निर्देश का पालन न करने पर या आधार को स्वीकार न करने के किसी भी मामले को गंभीरता से लिया जाएगा।
आयोग ने यह भी कहा “इस संबंध में 14 और 23 अगस्त 2025 के पत्रों के माध्यम से सख्त अनुपालन के लिए आधार कार्ड की एक प्रति के साथ दावों को स्वीकार करने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय के 14 अगस्त 2025 और 22 सितंबर 2025 के पिछले निर्देशों से पहले ही अवगत करा दिया है।”
बिहार विधानसभा चुनाव
गौरतलब है कि बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। आयोग ने इससे पहले विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया शुरू की थी। इसके लिए आयोग ने नागरिकों की पहचान के प्रमाणीकरण के लिए 11 दस्तावेजों की सूची जारी की थी। इस लिस्ट में आधार कार्ड और राशन कार्ड शामिल नहीं था। इसको लेकर विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने 8 सितंबर को इस मामले में सुनवाई के दौरान इन दस्तावेजों के साथ आधार कार्ड को भी शामिल करने का आदेश दिया था। अदालत में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिक जॉयमाला बागची की पीठ ने इस मामले में आदेश दिया था और आधार शामिल करने को लेकर चुनाव आयोग ने जो आपत्तियां दी थीं, उसे खारिज किया था।
अदालत ने हालांकि, इस बात पर भी जोर दिया था कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है लेकिन फिर भी यह पहचान और निवास का वैध संकेतक है।
इस मामले में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल पेश हुए थे तो वहीं चुनाव आयोग की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने पक्ष रखा था।
कपिल सिब्बल ने जहां चुनाव आयोग पर जानबूझकर आधार को शामिल न करने का आरोप लगाया था तो वहीं राकेश द्विवेदी ने कहा था कि मतदाता सूची को तैयार करते समय चुनाव आयोग को यह अधिकार है कि वह नागरिकता पर विचार कर सकता है।