Wednesday, September 10, 2025
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Educate Girls नामक एनजीओ ने जीता रेमन मैग्सेसे अवार्ड, 20 लाख से ज्यादा लड़कियों को किया शिक्षित

एजुकेट गर्ल्स नामक संस्था को रेमन मैग्सेसे अवार्ड के लिए चुना गया है। यह भारत की पहली ऐसी संस्था है जिसे चुना गया है।

Ramon Magsaysay Award 2025: दुनिया के प्रतिष्ठित पुरस्कारों की सूची में शुमार रेमन मैग्सेसे (Ramon Magsaysay) पुरस्कार ‘एजुकेट गर्ल्स (Educate Girls)’ नामक संस्था को दिया गया। एजुकेट गर्ल्स संस्था एक एनजीओ है और भारत के सुदूर गांवों में स्कूल न जा पाने वाली लड़कियों को शिक्षा मुहैया कराती है।

Educate Girls यह पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय संस्था बन गई है। इससे इसे विश्वस्तर पर ख्याति मिली है और इतिहास रच दिया है। रेमन मैग्सेसे अवार्ड फाउंडेशन (RMAF) ने संस्था को पुरस्कार के लिए चयनित करते हुए एक बयान जारी किया। इस बयान में लिखा कि एजुकेट गर्ल्स ने नाम से लोकप्रिय फाउंडेशन टू एजुकेट गर्ल्स ग्लोबली ने यह सम्मान पाने वाली पहली संस्था बनकर इतिहास रच दिया है।

Ramon Magsaysay Award को एशिया का नोबेल प्राइज कहा जाता है

रेमन मैग्सेस अवार्ड को एशिया का नोबेल प्राइज कहा जाता है। यह पुरस्कार हर साल एशिया के लोगों और संस्थाओं को समाज के प्रति उनकी निस्वार्थ सेवाओं के लिए दिया जाता है।

एजुकेट गर्ल्स के अलावा इस साल यह पुरस्कार मालदीव की शाहीना अली और फिलीपींस के फ्लेविआनो एंटोनियो एल विलानुएवा को दिया गया है। शाहीना अली जहां पर्यावरण के लिए काम करने के लिए जानी जाती हैं तो वहीं एंटोनियो गरीबों और वंचित तबके के लोगों के उत्थान के लिए जाने जाते हैं।

फाउंडेशन ने कहा है कि पुरस्कार जीतने वाले प्रत्येक विजेता को राष्ट्रपति रेमन मैग्सेसे की तस्वीर वाला एक पदक, एक प्रशस्ति पत्र और नकद पुरस्कार दिया जाएगा।

रेमन मैग्सेसे अवार्ड समारोह 7 नवंबर को मनीला में आयोजित किया जाएगा। यह इस पुरस्कार का 67वां संस्करण होगा। रेमन मैग्सेसे पुरस्कार फाउंडेशन (RMAF) ने एजुकेट गर्ल्स के लिए कहा कि यह पुरस्कार “लड़कियों और युवतियों की शिक्षा के माध्यम से सांस्कृतिक रुढ़िवादिता को दूर करने, उन्हें निरक्षरता के बंधन से मुक्त करने और उन्हें अपनी पूर्ण मानवीय क्षमता प्राप्त करने के लिए कौशल, साहस और क्षमता प्रदान करने की प्रतिबद्धता” के लिए दिया गया।

सफीना हुसैन ने की थी Educate Girls की स्थापना

जुकेट गर्ल्स नामक संस्था की स्थापना सफीना हुसैन ने की थी। इसकी स्थापना साल 2007 में हुई थी। सफीना हुसैन ने लंदन स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स से ग्रेजुएशन किया है। महिलाओं की निरक्षरता को दूर करने के लिए वह सैन फ्रांसिस्को से भारत लौट आईं।

फाउंडेशन ने एक बयान में कहा “राजस्थान से शुरुआत करते हए एजुकेट गर्ल्स ने लड़कियों की शिक्षा के मामले में सबसे जरूरमंद समुदायों की पहचान की, स्कूल न जाने वाली या स्कूल न जा पाने वाली लड़कियों को क्लासरूम में लाया और उन्हें तब तक वहां रखने के लिए काम किया जब तक कि वे उच्च शिक्षा और लाभकारी रोजगार के लिए योग्यता हासिल करने में सक्षम नहीं हो गईं।”

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संस्था ने साल 2015 में दुनिया का पहला डेवलपमेंट इंपैक्ट बॉन्ड (डीआईबी) लांच किया। फाउंडेशन ने आगे कहा कि इसकी शुरुआती 50 ग्रामीण स्कूलों से हुई थी और बाद में यह भारत के सबसे वंचित क्षेत्रों के 30 हजार से ज्यादा गांवों तक पहुंच गया। इससे करीब 20 लाख से ज्यादा लड़कियों को लाभ हुआ और इनमें से 90 प्रतिशत की पढ़ाई जारी रही।

हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक, संस्था ने प्रगति नामक एक ओपन-स्कूलिंग कार्यक्रम भी चलाया जिसके तहत 15-29 आयु वर्ग की लड़कियों को शिक्षा पूरी करने के लिए प्रेरित किया गया और कई अवसरों तक पहुंच मुहैया कराई। इस कार्यक्रम में शुरुआत में 300 लड़कियां जुड़ी थीं और अब तक 31,500 प्रतिभागी जुड़ चुके हैं।

अमरेन्द्र यादव
अमरेन्द्र यादव
लखनऊ विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक करने के बाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पत्रकारिता की पढ़ाई। जागरण न्यू मीडिया में बतौर कंटेंट राइटर काम करने के बाद 'बोले भारत' में कॉपी राइटर के रूप में कार्यरत...सीखना निरंतर जारी है...
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