नई दिल्लीः चुनाव आयोग ने अपनी चुनावी स्वच्छता मुहिम को तेज करते हुए 474 और पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (RUPPs) को हटा दिया है। इन दलों ने पिछले छह सालों में कोई चुनाव नहीं लड़ा था। चुनाव आयोग की यह कार्रवाई उसकी जारी चुनावी सफाई मुहिम का दूसरा चरण है। पहले चरण में, 9 अगस्त को 334 ऐसे दलों की मान्यता रद्द की गई थी। इस तरह, पिछले दो महीनों में अब तक हटाए गए कुल दलों की संख्या 808 हो गई है।
इन दलों को हटाने के साथ ही, 359 अन्य दलों के खिलाफ भी कार्रवाई शुरू कर दी गई है क्योंकि उन्होंने अपने ऑडिट किए गए खाते और खर्च की रिपोर्ट जमा नहीं की है। अंतिम कार्रवाई से पहले, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारी इन दलों को नोटिस जारी करेंगे।
चुनाव आयोग ने अगस्त में 334 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द की थी। इन सभी दलों ने पिछले छह सालों में कोई भी चुनाव नहीं लड़ा था। 9 अगस्त को 334 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने के बाद पंजीकृत RUPPs की संख्या 2,854 से घटाकर 2,520 हो गई थी। 474 दलों को डीलिस्ट करने के बाद अब यह संख्या 2,046 रह गई है। इनके अलावा, छह दलों को राष्ट्रीय दलों का दर्जा प्राप्त है, जबकि 67 राज्य स्तरीय दल हैं।
2022 में भी EC ने निष्क्रिय दलों के खिलाफ की थी कार्रवाई
यह पहली बार नहीं है जब चुनाव आयोग ने निष्क्रिय या गैर-गंभीर दलों के खिलाफ कार्रवाई की है। मई 2022 में, आयोग ने लगभग 2,100 RUPPs के खिलाफ अनिवार्य वित्तीय विवरण प्रस्तुत करने में विफल रहने पर कार्रवाई शुरू की थी। उस समय, आयोग ने यह भी चिंता जताई थी कि इनमें से कुछ संस्थाओं का इस्तेमाल राजनीतिक फंडिंग की आड़ में काले धन को खपाने के लिए किया जा रहा था।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने तब जोर देकर कहा था कि राजनीतिक दलों का पंजीकरण केवल एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि एक विशेषाधिकार है जिसके साथ जिम्मेदारी भी आती है। उन्होंने कहा था कि एक पंजीकृत दल जो चुनाव लड़ने या अपने वित्त का खुलासा करने में विफल रहता है, वह किसी भी लोकतांत्रिक उद्देश्य को पूरा नहीं करता। चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखने के लिए ऐसे दलों को सूची से हटाना आवश्यक है।
राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने की क्या है प्रक्रिया?
भारत में राष्ट्रीय, राज्य और पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों का पंजीकरण जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत किया जाता है। इसके नियमों के मुताबिक, अगर कोई दल लगातार छह साल तक चुनाव नहीं लड़ता है, तो उसका पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा। इसके अलावा, पंजीकरण के समय पार्टी को नाम, पता और पदाधिकारियों के विवरण जैसी जानकारी देनी होती है और किसी भी बदलाव की सूचना समय पर आयोग को देना अनिवार्य है।
चुनाव आयोग ने अगस्त में एक आधिकारिक बयान में कहा था कि “चुनावी प्रणाली को साफ-सुथरा बनाने की व्यापक और निरंतर रणनीति के तहत आयोग 2019 से उन राजनीतिक दलों की पहचान और डीलिस्टिंग कर रहा है, जिन्होंने लगातार छह साल तक एक भी चुनाव नहीं लड़ा।”
चुनाव आयोग ने किसी दल को अनुचित तरीके से सूची से बाहर न किया जाए, इसके लिए संबंधित राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEOs) को इन दलों को कारण बताओ नोटिस जारी करने का निर्देश भी दिया था। सुनवाई के बाद सीईओ को अपनी रिपोर्ट आयोग को भेजने की बात कही गई थी जिसके आधार पर अंतिम निर्णय लिया जाना था।