Delhi riots: दिल्ली हाई कोर्ट ने 2020 के दिल्ली दंगों की साजिश से जुड़े मामले में एक्टिविस्ट और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के पूर्व छात्र उमर खालिद, शरजील इमाम और सात अन्य लोगों की जमानत याचिका खारिज कर दी है। इन सभी पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, यानी यूपीपीए के तहत मुकदमा चल रहा है।
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच ने खालिद और इमाम के अलावा मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, अथर खान, मीरान हैदर, शादाब अहमद, अब्दुल खालिद सैफी और गुलफिशा फातिमा की भी जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं।
इन सभी आरोपियों की जमानत याचिकाएं 2022 से हाई कोर्ट में लंबित थीं। पहले भी कई पीठों द्वारा इन पर सुनवाई की जा चुकी है। कोर्ट ने 9 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और आज सुनाया। अदालत ने कहा, सभी अपीलें खारिज की जाती हैं।
2020 से जेल में बंद हैं सभी आरोपी
बता दें कि सभी आरोपी 2020 से जेल में हैं और उन्होंने निचली अदालत द्वारा उनकी जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद हाई कोर्ट का रुख किया था। अभियोजन पक्ष ने जमानत याचिकाओं का यह कहते हुए विरोध किया था कि यह कोई अचानक हुई हिंसा नहीं थी, बल्कि एक सोची-समझी साजिश और खराब मकसद के साथ पहले से ही योजनाबद्ध दंगे थे।
अभियोजन पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह भारत को दुनिया भर में बदनाम करने की साजिश थी और सिर्फ लंबे समय से जेल में होने का मतलब यह नहीं कि जमानत दे दी जाए। उन्होंने कहा कि अगर आप अपने राष्ट्र के खिलाफ कुछ भी करते हैं, तो बेहतर होगा कि आप बरी होने तक जेल में ही रहें।
खालिद ने के वकील ने दलील दी कि अन्य सह-आरोपियों के साथ व्हाट्सएप ग्रुप पर होना कोई अपराध नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि खालिद के पास से कोई भी आपत्तिजनक सामग्री या पैसा बरामद नहीं हुआ है। यही बात शरजील इमाम के वकील ने भी दोहराई। उसने तर्क दिया कि उनका दंगों की जगह, समय और अन्य आरोपियों यहाँ तक कि खालिद से भी कोई संबंध नहीं था। उन्होंने कहा कि उनके भाषणों और वॉट्सएप चैट में कभी भी किसी तरह की अशांति फैलाने की बात नहीं थी।
पुलिस ने गंभीर साजिश बताया
दिल्ली पुलिस ने सभी आरोपियों की जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि फरवरी 2020 की हिंसा “एक सोची-समझी और सुनियोजित साजिश” का नतीजा थी। पुलिस ने आरोप लगाया कि खालिद, इमाम और अन्य आरोपियों के भाषणों में सीएए-एनआरसी, बाबरी मस्जिद, तीन तलाक और कश्मीर का जिक्र किया जाता था, जिससे लोगों के मन में डर पैदा हुआ। पुलिस ने कहा कि इतने गंभीर अपराध वाले मामले में, जमानत एक नियम है और जेल अपवाद है का सिद्धांत लागू नहीं होता।
सुनवाई के दौरान कार्यकर्ताओं ने तर्क दिया कि वे पहले ही चार साल से ज्यादा हिरासत में बिता चुके हैं और जमानत के लिए मुकदमे की धीमी गति का हवाला दिया। पुलिस ने इस बात से इनकार किया कि वह निचली अदालत की कार्यवाही में देरी कर रही है। उसने कहा कि जल्द सुनवाई का अधिकार ‘फ्री पास’ नहीं है।
क्या है पूरा मामला?
यह पूरा मामला 23 फरवरी, 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों से जुड़ा है। ये दंगे नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध प्रदर्शन के बाद भड़के थे, जिसमें कम से कम 53 लोगों की मौत हुई थी और सैकड़ों घायल हुए थे। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच के मुताबिक, यह हिंसा एक गहरी साजिश का नतीजा थी, जिसका कथित मास्टरमाइंड उमर खालिद था। पुलिस का कहना है कि इस साजिश की नींव 2019 के सीएए और एनआरसी विरोधी प्रदर्शनों के दौरान ही रख दी गई थी।
मामले में शरजील इमाम को अगस्त 2020 में गिरफ्तार कर लिया गया। वहीं खालिद और अन्य लोगों का नाम बाद में चार्जशीट में जोड़ा गया। उमर खालिद की जमानत याचिका मई 2023 से जनवरी 2024 तक सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित रही थी, लेकिन उन्होंने परिस्थितियों में बदलाव का हवाला देते हुए इसे वापस ले लिया था। इसके बाद वह दोबारा निचली अदालत गए और इस साल फरवरी में फिर से हाई कोर्ट का रुख किया था।