Friday, October 10, 2025
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दिल्ली में जब तीन दिन तक चला खूनी खेल…2500 से ज्यादा मौतें, 1984 के सिख विरोधी दंगे की कहानी

नई दिल्ली: 31 अक्टूबर, 1984…भारत के लिए लोगों के लिए ये एक आम सुबह थी, लेकिन अगले कुछ घंटों में काफी कुछ बदलने वाला था। सुबह के 9 बजे से कुछ ज्यादा का वक्त हुआ होगा। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दिल्ली में एक-सफदरजंग रोड पर स्थित अपने आवास से पैदल ही पास के बंगले में स्थित अपने ऑफिस के लिए टहलते हुए निकली थी। इसी दौरान इंदिरा गांधी के अपने ही दो अंगरक्षकों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। दोनों सिख थे।

इंदिरा गांधी को आनन-फानन में एम्स अस्पताल ले जाया गया। हमले की कहानी सामने आने के बाद दिल्ली समेत पूरे देश में तनाव बढ़ने लगा था। शाम 6 बजे रेडियो पर हत्या की खबर सुनाई गई और फिर देश भर में सिखों के खिलाफ दंगे भड़क गए। इसका सबसे ज्यादा असर दिल्ली में नजर आया। एक और दो नवंबर को दिल्ली में जमकर कत्लेआम मचा। सरकारी आंकड़े तस्दीक करते हैं तीन दिनों में दिल्ली में 2700 के करीब और पूरे देश में 3000 लोगों को मारा गया। इसमें ज्यादातर सिख थे।

सिखों के खिलाफ क्यों और कैसे भड़के दंगे?   

अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में चलाए गए एंटी टेरर ऑपरेशन ‘ब्लू स्टार’ के बाद कई सिखों के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को प्रति आक्रोश था। इस ऑपरेशन में करीब 400 लोग मारे गए। इनमें आतंकी, सेना के जवान और कुछ श्रद्धालु भी शामिल थे।

यही नाराजगी वजह बनी कि 31 अक्टूबर 1984 को उनके ही सिख अंगरक्षकों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। ये हत्या सुनियोजित तरीके से की गई थी।

अपनी हत्या से एक दिन पहले ओडिशा में एक राजनीतिक रैली में इंदिरा गांधी ने कहा था, ‘अगर मेरा जीवन राष्ट्र की सेवा में जाता है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। अगर मैं आज मर जाती हूं, तो मेरे खून की हर बूंद देश को ताकत देगी।’

बहरहाल, 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या की खबर के बीच तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को अपना विदेश दौरा बीच में छोड़कर दिल्ली लौटना पड़ा। वे एयरपोर्ट से सीधे एम्स के लिए रवाना हुआ, जहां इंदिरा गांधी का शव रखा हुआ था। 

इस दौरान दंगाइयों की गोलबंदी होने लगी थी। राष्ट्रपति के काफिले को भी निशाना बनाया, हालांकि सुरक्षाकर्मियों की सूझबूझ से उन्हें सुरक्षित वहां से निकाला लिया गया। चूकी इंदिरा गांधी की हत्या के पीछे सिख बॉडीगार्ड्स का हाथ था, इसलिए दंगाइयों ने सिखों को टारगेट करना शुरू किया।

दिल्ली के इन इलाकों में सबसे ज्यादा हिंसा

दंगे सबसे ज्यादा दिल्ली के यमुना के पास वाले इलाकों में हुए। जिनमें सुल्तानपुरी, मंगोलपुरी और त्रिलोकपुरी शामिल हैं। इसके अलावा जंगपुरा, लाजपत नगर, महारानी बाग, पटेल नगर, सफदरजंग एनक्लेव, पंजाबी बाग, नंद नगरी जैसे इलाके भी काफी प्रभावित हुए। सिखों को खोज-खोजकर निशाना बनाया गया। 

नानावती आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में 1984 के दंगों के संबंध में कुल 587 एफआईआर दर्ज की गईं, जिनमें 2,733 लोग मारे गए। कुल में से, पुलिस ने लगभग 240 मामलों को “अनट्रेस” के रूप में बंद कर दिया और लगभग 250 मामलों में आरोपी बरी कर दिये गए। वर्तमान में, 20 से ज्यादा मामले लंबित हैं।

दिल्ली में हिंसा का खौफनाक मंजर, बुत बना रहा प्रशासन

नानावती आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि पिछली शाम को (31 अक्टूबर) को ‘या तो बैठकें आयोजित की गईं या जो लोग हमलों को अंजाम दे सकते थे, उनसे संपर्क किया गया और उन्हें सिखों को मारने और उनके घरों और दुकानों को लूटने के निर्देश दिए गए।’ हमले सुनियोजित तरीके से और पुलिस के डर के बिना किए गए थे। रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसा लगता है कि उन्हें (दंगाइयों को) आश्वासन दिया गया था कि उन्हें अपराध करते हुए और इसके बाद भी कोई नुकसान नहीं होगा।

रिपोर्ट के अनुसार हत्या का एक तरीका शहर भर के इलाकों में आम था। इसमें सिख समुदाय के पुरुष सदस्यों को उनके घरों से बाहर निकाल दिया जाता था। कई को पहले पीटा जाता था और फिर योजनाबद्ध तरीके से जिंदा जला दिया गया। कुछ मामलों में, गले में टायर डाल दिए गए और फिर उन पर मिट्टी का तेल या पेट्रोल डालकर आग लगा दी गई। 

कुछ मामले में उन पर सफेद ज्वलनशील पाउडर फेंक दिया गया, जिसने तुरंत आग पकड़ ली। यह एक सामान्य पैटर्न था जिसका पालन बड़े पैमाने पर कई जगहों पर भीड़ ने किया था। कई इलाकों में सिखों की दुकानों की पहचान की गई, उन्हें लूटा गया और जला दिया गया। 

कुल मिलाकर जो शुरू में गुस्से के रूप में शुरू हुआ था वह एक संगठित नरसंहार बन गया। रिपोर्ट के अनुसार ऐसा स्पष्ट प्रतीत होता है कि 31 अक्टूबर की रात को निर्देश जारी किए गए थे कि सिखों को कैसे मारा जाना है। साथ ही यह आश्वासन भी दिया गया था कि पुलिस हस्तक्षेप नहीं करेगी। 

यही नहीं, सिखों को देश भर के कई अन्य शहरों जैसे कानपुर, बोकारो, जबलपुर और राउरकेला सहित कई जगहों पर निशाना बनाया गया। कुल मिलाकर 1984 का यह दंगा स्वतंत्र भारत में सांप्रदायिक हिंसा के सबसे खूनी और क्रूर घटना में से एक है।

भीड़ को भड़काने में कांग्रेसी नेताओं का आया नाम

नानावती आयोग ने दंगों के दौरान हुई घटनाओं की जांच के बाद अपनी रिपोर्ट में कांग्रेस के कई नेताओं को दोषी ठहराया। रिपोर्ट में यह कहा गया कि दंगों के पीछे राजनीतिक समर्थन खुले तौर पर था। दंगाइयों को बढ़ावा दिया गया था। रिपोर्ट में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर और सहित कई अन्य नामों का जिक्र है। आरोप लगे कि इन्होंने इन दंगों में सिखों के खिलाफ भीड़ को भड़काया था।

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