Homeभारतदिल्ली यूनिवर्सिटी के LLB सिलेबस में मनुस्मृति को शामिल करने के प्रस्ताव...

दिल्ली यूनिवर्सिटी के LLB सिलेबस में मनुस्मृति को शामिल करने के प्रस्ताव पर विवाद…क्या है पूरा मामला?

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय में लॉ के स्नातक कोर्स में प्राचीन ‘मनुस्मृति’ से जुड़े कुछ अंश पढ़ाने के प्रस्ताव पर विवाद हो गया है। शिक्षकों के एक वर्ग द्वारा विरोध जताने के बाद वाइस-चांसल योगेश सिंह ने गुरुवार को कहा कि इस विषय के पेपर्स को अकादमिक परिषद के सामने प्रस्ताव रखने से पूर्व हटा दिया जाएगा।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार योगेश सिंह ने कहा, ‘विश्वविद्यालय ने आज (गुरुवार, 11 जुलाई) दोपहर 2 बजे के आसपास एक समीक्षा बैठक की और कानून संकाय द्वारा न्यायशास्त्र (कानूनी पद्धति) पेपर में मनुस्मृति पर सुझाए गए पाठों को शामिल करने से खारिज कर दिया।’

इससे पहले संशोधित पाठ्यक्रम दस्तावेज को अगस्त में शुरू होने वाले आगामी शैक्षणिक सत्र में शामिल करने के लिए शुक्रवार को डीयू की अकादमिक मामलों की अकादमिक परिषद के समक्ष रखा जाना था। यहां से मंजूरी मिलने के बाद मनुस्मृति से जुड़े कुछ पाठों को सिलेबस में शामिल किया जाता।

मनुस्मृति से जुड़े इन पाठों को शामिल करने का था प्रस्ताव

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार विषय ‘मेधातिथि की राज्य और कानून की अवधारणा’ (Medhatithi’s concept of State and LaW) को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना था। मेधातिथि मनुस्मृति के सबसे पुराने और सबसे प्रसिद्ध टिप्पणीकारों में से एक हैं।

जीएन झा द्वारा लिखित ‘मनुस्मृति विथ द ‘मनुभाष्य’ ऑफ मेधातिथि’ (Manusmriti with the Manubhasya of Medhatithi) और टी कृष्णास्वामी अय्यर द्वारा लिखित मनु स्मृति – स्मृतिचंद्रिका (Manu Smriti- Smritichandrika) को पढ़ने के लिए सुझाव के रूप में जोड़ा गया था।

दरअसल, जाति व्यवस्था, लैंगिक असमानता, कठोर दंड, पुराने सामाजिक मानदंडों और मूल्यों, सामाजिक बहिष्कार जैसी बातों का समर्थन करने की वजह से ‘मनुस्मृति’ हमेशा से विवादों में रही है।
हालांकि, फैकल्टी ऑफ लॉ की डीन प्रोफेसर अंजू वली टिकू ने कहा, ‘इसे शामिल करने का प्रस्ताव एक आलोचनात्मक तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य लाने के लिए है। इसका हिंदुओं, हिंदुत्व आदि से कोई लेना-देना नहीं है।’

वहीं, इस पूरे प्रस्ताव पर नाराजगी जाहिर करते हुए कैम्पस लॉ सेंटर के एक फैकल्टी मेंबर ने कहा, ‘मनुस्मृति जैसे प्राचीन ग्रंथों को पाठ्यक्रम में शामिल करने का कोई तर्क नहीं है। इससे जाति, वर्ग आदि के आधार पर समाज का विभाजन होगा। समाज में भेदभाव पैदा करना कहीं से तर्कसंगत नहीं है। युवा पीढ़ी जो उन बातों को नहीं जानती है, ये पाठ उन्हें उन विभाजनकारी समाज का हिस्सा बनने की ओर प्रेरित करेंगे और पीछे ले जाएंगे। प्राचीन काल में महिलाओं के अधिकार प्रतिबंधित थे और पुरुष परिवार का मुखिया था। जब हम बेहतर शिक्षा की ओर बढ़ रहे हैं, और तकनीकी आधार पर अन्य प्रगतिशील देशों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, ऐसे में इन पाठों को लागू करना तर्कसंगत नहीं है।’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Recent Comments

मनोज मोहन on कहानीः याद 
प्रकाश on कहानीः याद 
योगेंद्र आहूजा on कहानीः याद 
प्रज्ञा विश्नोई on कहानीः याद 
डॉ उर्वशी on एक जासूसी कथा
Exit mobile version