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जलवायु परिवर्तन का सबसे खराब असर क्या नजर आने वाला है?

नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन आज के दौर में बड़ी समस्या बनता जा रहा है। इसके कई प्रभाव आने वाले दिनों में रोजमर्रा की जिंदगी पर नजर आएंगे। जलवायु परिवर्तन से पैदा होने वाली एक बड़ी समस्या- खराब स्वास्थय उभर कर सामने आ सकता है। 2024 लैंसेट रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश देशों में जलवायु परिवर्तन से खराब स्वास्थ्य का जोखिम बढ़ रहा है। इसमें भारत सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है।

30 अक्टूबर को द लैंसेट द्वारा प्रकाशित ‘काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में बताया गया है कि ‘स्वास्थ्य खतरों पर नजर रखने वाले 15 संकेतकों में से 10 नए रिकॉर्ड तक पहुंच रहे हैं।’

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 2015 के पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं के बावजूद, वैश्विक तापमान में वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा के करीब पहुंच रहा है। इससे स्वास्थ्य संबंधी जोखिम तेजी से बढ़ते नजर आएंगे। यह रिपोर्ट अजरबैजान के बाकू में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के 29वें सम्मेलन (COP29) से पहले जारी की गई थी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक टेड्रोस एडनोम घेब्रेयसस ने कहा, ‘जलवायु संकट एक स्वास्थ्य संकट है। जैसे-जैसे धरती गर्म होती है, जलवायु संबंधी आपदाओं की तीव्रता बढ़ती है, इससे कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रहेगा।’

वहीं, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा, ‘रिकॉर्ड-उच्च उत्सर्जन हमारे स्वास्थ्य के लिए बड़े खतरे पैदा कर रहा है। हमें उत्सर्जन में कटौती करके, लोगों को जलवायु बदलाव की चरम सीमाओं से बचाकर और हमारी जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक इस्तेमाल की लत को खत्म कर इसका इलाज खोजना चाहिए।’

रिपोर्ट में क्या बड़ी बातें कही गई हैं?

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 से 23 के बीच लोगों को औसतन 46 दिन अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ा, जो सेहत के लिए भी खतरनाक था। साल 2023 में लगभग 31 देशों में अपेक्षा से कम से कम 100 से अधिक दिनों तक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक गर्मी का अनुभव लोगों को करना पड़ा।

रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में 1986-2005 के औसत की तुलना में उच्च तापमान के कारण रिकॉर्ड 6% अधिक घंटे की नींद बर्बाद हुई। नींद की कमी इंसान के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों पर हानिकारक प्रभाव डालती है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि साल 2022 तक 124 देशों में 15 करोड़ लोग हीटवेव, सूखे और अन्य चरम हालात वाले मौसम के संयुक्त प्रभाव के कारण मध्यम से गंभीर स्तर तक भोजन की कमी का सामना कर रहे थे।

इसके अलावा बढ़ते तापमान के कारण डेंगू, मलेरिया और वेस्ट नाइल वायरस जैसी जीवन-घातक बीमारियां नए क्षेत्रों में फैलती रहती हैं। गर्म और शुष्क मौसम के कारण अधिक रेत और धूल भरी आंधियाँ आती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अत्यधिक सूखे की वजह से मानव जीवन रेगिस्तानी धूल की खतरनाक मात्रा के संपर्क में आता है, जो 2003-07 और 2018-22 के बीच 48% देशों में बढ़ गया।’

सरकारें और कंपनियां लापरवाह!

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारें और कंपनियां जीवाश्म ईंधन में काफी निवेश, सर्वकालिक उच्च ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन में देरी के साथ खतरे को बढ़ावा दे रही हैं। इससे दुनिया भर में लोगों के जीवित रहने की संभावना कम हो रही है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पूरी तरह से शून्य उत्सर्जन के लिए वित्तीय संसाधन उपलब्ध हैं, फिर भी सरकारें और कंपनियां जीवाश्म ईंधन सब्सिडी और निवेश पर खरबों डॉलर खर्च कर रही हैं जो जलवायु परिवर्तन को बदतर बना रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि उस पैसे को स्वच्छ ऊर्जा और लोगों के स्वास्थ्य और आजीविका को लाभ पहुंचाने वाली गतिविधियों की ओर खर्च किया जाना चाहिए।

भारत के बारे में रिपोर्ट क्या कहती है?

रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी ने किस तरह लोगों के स्वास्थ्य पर असर डाला है। ‘द टेलीग्राफ’ ने रिपोर्ट के हवाले से कहा, ‘2023 में प्रत्येक व्यक्ति को 2400 घंटे से अधिक, यानी 100 दिनों के बराबर अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आना पड़ा। यह गर्मी के तनाव के संबंध में कम से कम मध्यम प्रकार का जोखिम था।’

इतना ही नहीं, जलवायु परिवर्तन का असर तटीय इलाकों के समुद्र स्तर पर भी पड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार, ‘भारत की 7,500 किमी से अधिक लंबी तटीय रेखा प्राकृतिक प्रक्रियाओं और मानवीय गतिविधियों आदि के कारण बढ़ते समुद्र के स्तर से गंभीर खतरों का सामना कर रही है। सुंदरबन, मुंबई, तमिलनाडु, पुदुचेरी, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और गुजरात के कुछ हिस्सों जैसे तटीय क्षेत्र विशेष रूप से संवेदनशील हैं।’

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 में देश में लगभग 1.81 करोड़ लोग समुद्र तल से 1 मीटर से कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रहते थे, और इनका माइग्रेशन शुरू हुआ।

रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन से शिशु और बुजुर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ‘2014-2023 तक प्रत्येक शिशु और 65 वर्ष से अधिक वयस्क को प्रति वर्ष औसतन 7.7 और 8.4 दिन हीटवेव का सामना करना पड़ा। यह 1990-1999 की तुलना में क्रमश: 47% और 58% अधिक है।

जलवायु परिवर्तन ने बीमारियों को भी बढ़ावा दिया है। उदाहरण के तौर पर मलेरिया जो अक्सर निचले इलाकों तक ही सीमित था, अब हिमालय तक फैल गया है जबकि डेंगू पूरे देश में फैल गया है।

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