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कैश कांड में फंसे जस्टिस यशवंत वर्मा को केवल ‘वर्मा’ कहने पर वकील पर भड़के सीजेआई

नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान वकील मैथ्यूज जे. नेदुमपारा को कड़ी फटकार लगाई। नेदुमपारा ने दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा का जिक्र केवल “वर्मा” कहकर किया, जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास के स्टोररूम में नकदी मिलने के आरोपों की चर्चा है। 

सीजेआई गवई ने नाराजगी जताते हुए कहा, “क्या वह आपके दोस्त हैं? वे अभी भी जस्टिस वर्मा हैं। कुछ शिष्टाचार रखें। आप एक विद्वान जज का जिक्र कर रहे हैं।”

यह टिप्पणी तब आई जब नेदुमपारा ने जस्टिस वर्मा के बंगले से भारी मात्रा में नकदी मिलने के कथित मामले में दिल्ली पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने के लिए तीसरी बार याचिका दायर की थी।

याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार

सीजेआई ने इस मामले को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने से इनकार करते हुए पूछा, “क्या आप चाहते हैं कि याचिका को अभी खारिज कर दिया जाए?” जिसके जवाब में वकील ने कहा, “याचिका खारिज नहीं हो सकती। एफआईआर दर्ज होनी ही चाहिए। अब तो वर्मा भी यही चाहते हैं। एफआईआर और जांच जरूरी है।”

इस पर सीजेआई ने फिर से नेदुमपारा को शिष्टाचार बनाए रखने की हिदायत दी और याद दिलाया कि जस्टिस वर्मा अभी भी जज हैं।

नेदुमपारा की याचिका में दावा किया गया है कि 14 मार्च को जस्टिस वर्मा के बंगले के स्टोररूम में आग लगने के बाद वहां से जली हुई नकदी बरामद हुई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि केंद्र सरकार—जो दिल्ली पुलिस को नियंत्रित करती है—को तुरंत एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देना चाहिए।

पहले भी ऐसी याचिका खारिज कर चुका है सुप्रीम कोर्ट

मई में सुप्रीम कोर्ट ने नेदुमपारा की ऐसी ही एक याचिका को खारिज कर दिया था। तब जस्टिस अभय एस. ओका (अब सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि इस मामले में इन-हाउस जांच चल रही है और उसकी रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गई है। बेंच ने नेदुमपारा को सलाह दी थी कि वे पहले इन अधिकारियों को अपनी मांग के लिए आवेदन दें। अगर कार्रवाई नहीं होती, तभी वे कोर्ट में वापस आ सकते हैं।

मार्च के अंत में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह की एक याचिका खारिज करते हुए कहा था कि इन-हाउस जांच अभी चल रही है। अगर जांच में कुछ गलत पाया गया, तो एफआईआर दर्ज की जा सकती है या मामला संसद को भेजा जा सकता है।

दूसरी ओर, जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर इन-हाउस समिति के फैसले को चुनौती दी है। उनकी याचिका में कहा गया है कि समिति ने पक्षपातपूर्ण तरीके से काम किया और उन्हें अपनी सफाई में बात रखने का उचित मौका नहीं दिया गया।

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