नई दिल्लीः जस्टिस बीआर गवई ने मध्य प्रदेश के एक मंदिर में क्षतिग्रस्त भगवान विष्णु की मूर्ति की पुनर्स्थापना से जुड़ी एक सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी, जिसको लेकर उन्हें आलोचनाएं झेलनी पड़ीं। आलोचना के जवाब में उन्होंने 18 सितंबर (गुरुवार) को यह स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणी को गलत तरीके से पेश किया गया। इस दौरान उन्होंने जोर देकर कहा कि वह “सभी धर्मों का सम्मान करते हैं।”
एक अन्य मामले में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आज के समय में प्रत्येक क्रिया पर सोशल मीडिया की असंगत प्रतिक्रिया होती है। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सोशल मीडिया को “एक बेलगाम घोड़ा” कहा जिसे वश में नहीं किया जा सकता।
बी आर गवई ने क्या टिप्पणी की थी?
बीते मंगलवार को सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने जावरी मंदिर में सात फुट की मूर्ति की पुनर्स्थापना की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि यह मामला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधिकार क्षेत्र में आता है।
पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से कहा “यह शुद्ध रूप से प्रचार हित याचिका है। जाइए और भगवान से ही कुछ करने के लिए कहिए। आप कहते हैं कि आप भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हैं। इसलिए अब जाइए और प्रार्थना कीजिए।”
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गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा “किसी ने मुझे बताया कि मैंने जो टिप्पणियां की थीं, वे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी गई हैं…मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं।”
तुषार मेहता और कपिल सिब्बल ने क्या कहा?
सोशल मीडिया पर हो रही टिप्पणियों की आलोचना करते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह गंभीर है। उन्होंने कहा कि हम न्यूटन के नियम को जानते थे कि प्रत्येक क्रिया की समान प्रतिक्रिया होती है लेकिन अब प्रत्येक क्रिया की सोशल मीडिया पर असमान प्रतिक्रिया हो रही है।
इस बीच सिब्बल ने कहा कि हम हर दिन इसे झेलते हैं, यह एक बेलगाम घोड़ा है जिसे नियंत्रित करने का कोई तरीका नहीं है।
सीजेआई बी आर गवई की टिप्पणी सोशल मीडिया पर जब वायरल हुई तो यूजर्स ने इनकी आलोचना करते हुए कहा कि इससे धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं। कुछ ने तो उन्हें हटाने तक की मांग की।
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वहीं, कई वकीलों ने भी मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर उनसे स्पष्टीकरण जारी करने और अपनी टिप्पणी वापस लेने का अनुरोध किया था।
इस मामले में विश्व हिंदू परिषद ने भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर टिप्पणी करते हुए लिखा था कि हम सब का यह भी कर्त्तव्य है कि अपनी वाणी में संयम रखें। इस पोस्ट में विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष आलोक कुमार के हवाले से यह भी कहा गया कि “हमको लगता है कि मुख्य न्यायाधीश की मौखिक टिप्पणी ने हिन्दू धर्म की आस्थाओं का उपहास उड़ाया गया है। अच्छा होगा अगर इस तरह की टिप्पणी करने से बचा जाए।”