पटना: बिहार में चुनाव आयोग द्वारा विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया खत्म होने के बाद मंगलवार (30 सितंबर) को फाइनल लिस्ट जारी कर दी गई। इस प्रक्रिया के बाद सामने आई लिस्ट के अनुसार राज्य के सभी 38 जिलों में मतदाताओं की संख्या घटी है। सबसे ज्यादा गिरावट गोपालगंज, किशनगंज और पूर्णिया जिले में आई है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार सभी जिलों को लेकर एक और समानता ये भी है कि 1 अगस्त को एसआईआर अभियान के तहत प्रकाशित पहले मसौदे और मंगलवार को जारी अंतिम मतदाता सूची के बीच मतदाताओं की संख्या में मामूली वृद्धि हुई है। अंतिम मतदाता सूची से संबंधित जिला-स्तरीय आँकड़े जिला चुनाव अधिकारियों द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं।
मतदाताओं की संख्या में सबसे ज्यादा गिरावट बिहार के नेपाल की सीमा से लगे जिलों में हुई है। इनमें मुस्लिम बहुलता वाले जिले भी शामिल हैं। इससे उलट बिहार के सबसे ज्यादा आबादी वाले जिले पटना में मतदाताओं की संख्या में सबसे कम यानी 4.59% की गिरावट हुई है।
सूत्रों के अनुसार नागरिकता साबित करने या फिर जरूरी दस्तावेज देने में विफल रहने को लेकर ड्राफ्ट रोल में शायद ही या बेहद कम नाम हटे हैं। इससे चुनाव आयोग के इस दावे पर सवालिया निशान भी खड़ा हो रहा है कि एसआईआर कराने का एक मुख्य कारण ‘अवैध आप्रवासियों’ को लिस्ट से बाहर निकालना था।
किन जिलों में लिस्ट से कटे सबसे ज्यादा नाम
गोपालगंज इसमें शीर्ष पर है। यहां 24 जून (एसआईआर शुरू होने से पहले) को 20.56 लाख मतदाता थे, जो 1 अगस्त की मसौदा मतदाता सूची में 15.1% घटकर 17.46 लाख रह गए थे। अंतिम मतदाता सूची में 3.49% की वृद्धि से कुल मतदाताओं की संख्या बढ़कर 18.07 लाख हो गई। कुल मिलाकर, एसआईआर के दौरान गोपालगंज के मतदाताओं की संख्या में 12.13% की गिरावट आई। गोपालगंज में मुस्लिम आबादी करीब 17.02% है।
गोपालगंज के बाद किशनगंज और पूर्णिया में मतदाताओं की संख्या में सबसे ज्यादा गिरावट हुई है। यहां मतदाताओं की संख्या में क्रमशः 9.69% और 8.41% की कमी आई है। किशनगंज और पूर्णिया दोनों ही सीमांचल क्षेत्र में आते हैं और पश्चिम बंगाल की सीमा से लगे हैं। किशनगंज का एक हिस्सा नेपाल से भी लगता है। दोनों राज्य में मुसलमानों की सबसे ज्यादा आबादी वाले जिलों में से एक हैं।
साल 2011 की जनगणना के अनुसार 67.98% मुस्लिम आबादी के साथ, किशनगंज बिहार का एकमात्र मुस्लिम बहुल जिला है। पूर्णिया में 38.46% मुसलमानों की आबादी है। यह राज्य में चौथा मुसलमानों की सबसे ज्यादा आबादी वाला जिला है।
इसके अलावा सीमांचल के अंतर्गत आने वाले दो अन्य जिलों- कटिहार और अररिया में मतदाताओं की संख्या क्रमशः 7.12% और 5.55% घटी। कटिहार की मुस्लिम आबादी लगभग 44.47% है। वहीं, अररिया में 42.95% मुस्लिम आबादी रहती है। अररिया की सीमा नेपाल से लगती है। इसके साथ-साथ पाँच अन्य जिले – मधुबनी, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, सुपौल और पश्चिमी चंपारण भी नेपाल की सीमा से सटे हैं। इन सभी जिलों में मतदाताओं की संख्या में 5% से ज्यादा की गिरावट हुई है।
कम से कम 15% मुस्लिम आबादी वाले अन्य जिलों में मधुबनी (18.25% मुस्लिम), भागलपुर (17.68%) और पूर्वी चंपारण (19.42%) में मतदाताओं की संख्या में 7% से 8% तक की गिरावट हुई है। 15% से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले बाकी सात जिलों में मतदाताओं की संख्या में 4% से 7% तक की गिरावट हुई है।
10 जिलों में मतदाताओं की संख्या में 5% से कम की गिरावट
इसके अलावा केवल 10 जिलों में मतदाताओं की संख्या में 5% से कम की गिरावट हुई। यहां ये भी गौर करने वाली बात है कि इन 10 जिलों में से छह जनसंख्या के लिहाज से राज्य के सबसे छोटे जिलों में से हैं। पटना के बाद बिहार में दूसरा सबसे अधिक आबादी वाले जिले- पूर्वी चंपारण में मतदाताओं की संख्या में 7.08% की गिरावट देखी गई, जबकि मधुबनी और मुजफ्फरपुर जैसे घनी आबादी वाले जिलों में क्रमशः 7.9% और 5.59% की गिरावट हुई है।
1 अगस्त की मसौदा मतदाता सूची और 30 सितंबर की अंतिम मतदाता सूची के बीच मतदाताओं की संख्या में वृद्धि के मामले में पूर्णिया 4.16% की वृद्धि के साथ शीर्ष पर रहा। सबसे कम वृद्धि कटिहार में हुई। यहाँ 1.24% की वृद्धि हुई।
मतदाताओं की संख्या के संदर्भ में पटना में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई, जो 1.64 लाख यानी 3.52% रही। इसके बाद मुजफ्फरपुर (88,108 यानी 2.75%) और मधुबनी (85,645 या 2.83%) जैसे अन्य घनी आबादी वाले जिलों के स्थान हैं।
चुनाव आयोग के SIR का फाइनल आंकड़ा क्या रहा?
चुनाव आयोग ने जो डेटा जारी किया है, उसके अनुसार एसआईआर के दौरान 68.6 लाख नाम काटे गए, जिनमें से 65 लाख नाम 1 अगस्त को मसौदा नामावली प्रकाशित होने पर और बाद में 3.66 लाख दावे व आपत्तियों के चरण के दौरान हटाए गए। इसके साथ ही, 21.53 लाख नए मतदाता भी जोड़े गए।
मसौदा चरण में हटाए गए 65 लाख नामों में से 22 लाख को मृत घोषित किया गया था। 36 लाख को स्थायी रूप से विस्थापित या अनुपस्थित दिखाया गया था जबकि अन्य 7 लाख पहले से ही कहीं और नामांकित हो चुके थे। सूत्रों के अनुसार अंतिम लिस्ट से पहले हटाए गए और 3.66 लाख नामों में से 2 लाख से ज्यादा नाम माइग्रेशन के कारण हटाए गए। इसके अलावा लगभग 60,000 मृत्यु के कारण और 80,000 नाम दोहराव (दो स्थानों पर नामांकित) के कारण हटाए गए हैं।
टॉप 5 जिले सबसे ज्यादा जहां सबसे ज्यादा कटे नाम
गोपालगंज- 12.13%
किशनगंज- 9.69%
पूर्णिया- 8.41%
मधुबनी- 7.9%
भागलपुर- 7.58%
टॉप 5 जिले सबसे ज्यादा जहां सबसे कम नाम कटे
अरवल- 3.38%
जहानाबाद- 3.45%
नालंदा- 3.54%
शेखपुरा- 3.57%
रोहतास- 3.73%