Friday, October 10, 2025
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खेती बाड़ी-कलम स्याही: पंचायत स्तर के भ्रष्टाचार को सामने ला पाएगा जन सुराज?

कल्पना करिए, बिहार में जन सुराज के लोग पंचायत स्तर पर सक्रिय हो जाएं, ठीक वैसे ही जैसे इन दिनों उनकी पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर आक्रमक हो रहे हैं प्रदेश स्तर पर! तो क्या- क्या होगा? दरअसल अभी पीके की पार्टी पूरी तरह से उन्हीं की आवाज पर चल रही है। वे जिस अंदाज से आक्रमकता दिखाते हैं, उसी के आसपास उनकी पार्टी की राजनीति चल रही है। लेकिन वन मैन आर्मी की कहानी एक मोड़ पर थका भी देती है। ऐसे में पार्टी से जुड़े अन्य लोगों को भी अपने स्तर पर चहलकदमी दिखानी होगी।

इन्हीं सब मसलों को लेकर पिछले दिनों फेसबुक पर एक छोटा सा पोस्ट लिखा था तो लोगों की ढेर सारी प्रतिक्रिया आई। वैसे भी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले से डिजिटल स्पेस पर प्रशांत किशोर की टीम सबसे अधिक हल्ला मचाए हुए है। लेकिन इन सबमें हीरो अबतक पीके ही हैं। तो यदि उनकी पार्टी पंचायत स्तर पर सक्रियता दिखाने लगे तो क्या-क्या हो सकता है।

अभी भी सबसे अधिक निराशा गांव देहात में ही है। ऐसे में यदि जन सुराज के प्रखंड स्तर के पार्टी होल्डर- कार्यकर्ता अपने निर्वाचित मुखिया, वार्ड मेंबर आदि से हिसाब किताब मांगने लग जाएं तो क्या होगा? दरअसल सोचने में क्या जाता है। यदि सचुमच ऐसा किया जाए तो पंचायत स्तर पर हंगामा खड़ा हो सकता है।

यदि पीके की पार्टी के लोग पंचायत की गड़बड़ी को सामने लाने का काम करते हैं , ठीक वैसे ही जैसे प्रशांत किशोर की टीम ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की गड़बड़ी को सामने लाया तो रिजल्ट कुछ भी निकल सकता है।
 
दरअसल बिहार में अबतक पंचायत स्तर की राजनीति में कोई भी दल सामने नहीं आया है। पार्टी स्तर पर पंचायत चुनाव नहीं हुए हैं। ऐसे में कोई भी दल यदि इस रण में अभी से कूद जाए तो बाजी पलट सकती है।
 
भले ही ‘बिहार में बहार है’ कि बात हो रही हो लेकिन यह राज्य भ्रष्टाचार के दलदल में कंठ तक डूबा हुआ है। आप किसी भी प्रखंड और अंचल कार्यालय चले जाइए, करप्शन का गंध होश उड़ा देगा। ऐसे में जन सुराज जैसी पार्टी, जिसका आधार ही इवेंट है, वो यदि अंचल कार्यालय के आसपास लोगों के लिए हेल्प डेस्क शुरू कर दे और आम जन की परेशानी को डिजिटल स्पेस पर परोस दे तो ग्राउंड का रंग कुछ और ही नजर आने लगेगा।

ऐसे ही यदि जन सुराज के प्रखंड और पंचायत स्तर के नेता अपने वार्ड में हुए खर्च का हिसाब लोगों के बीच लाने का जोखिम भरा काम करना शुरु कर दें और सार्वजनिक जगह पर एक बोर्ड पर खर्च का हिसाब किताब लिख दें तो सोचिए बात कहां पहुंच जाएगी! वैसे यह बहुत जोखिम भरा काम है क्योंकि हम आप पीएम-सीएम पर आसानी से ऊंगली उठा देते हैं लेकिन अपने मुखिया, वार्ड मेंबर पर सवाल उठाने से पहले सौ बार सोचते हैं क्योंकि इसमें स्थानीयता के खतरे हैं!

यह लिखते हुए मुझे प्रदीप सैनी की एक कविता की याद आने लगी है- ‘स्थानीयता’। इसमें प्रदीप सैनी लिखते हैं-

‘आसान है करना प्रधानमंत्री की आलोचना
मुख्यमंत्री की करना उससे थोड़ा मुश्किल
विधायक की आलोचना में ख़तरा ज़रूर है
लेकिन ग्राम प्रधान के मामले में तो पिटाई होना तय है।‘

हमने जब इस मुद्दे पर फेसबुक पोस्ट लिखा तो एक टिप्पणी आई, जिसमें कहा गया कि “आम जनता की छटपटाहट की सबसे बड़ी मरहम बनकर प्रशांत किशोर उभरे हैं। सांसद, विधायक, डीएम, एसपी को आप बेधड़क सोशल साइट पर भी कुछ कह सकते हैं, मगर दरोगा, वार्ड सदस्य, सरपंच, और मुखिया के खिलाफ आज भी आम जनता खुलकर विरोध नहीं कर पा रही है। विकास सिर्फ कागज और पटना तक ही सीमित कर दिया गया है….”

इस तरह की टिप्पणी पढ़कर पता चलता है कि करप्शन को लेकर गांव घर में लोगों की चुप्पी की वजह क्या होती है। ऐसे में प्रशांत किशोर की पार्टी के लोग, उनसे जुड़ी इवेंट कंपनी यदि पंचायत स्तर पर होने वाले सरकारी काम का केवल वीडियो ही बनाना शुरु कर दे तो सच्चाई सबके सामने आ जाएगी।

ऐसा करने से नल-जल, सड़क और अन्य योजनाओं का पोल ही खुल जाएगा। दरअसल पीके की टीम ऐसा काम करती आई है और फिलहाल प्रशांत किशोर की छवि भी इसी अंदाज में बनाई जा रही है। अभी उनकी पार्टी के लोग केवल प्रशांत किशोर की आक्रामक बातों को ही डिजिटल स्पेस पर शेयर कर रहे हैं! वे स्थानीय स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार को अपने सोशल मीडिया स्पेस पर चस्पा नहीं कर रहे हैं! वे दिलीप जायसवाल पर सवाल उठा देते हैं लेकिन अपने पड़ोस के जनप्रतिनिधि पर सवाल उठाने से बच रहे हैं, दरअसल यही है स्थानीयता के खतरे!

अपना मानना है कि यदि पंचायत स्तर पर ऐसा कुछ अगले दो महीने, मतलब सितंबर तक जन सुराज के लोग बिना डरे कर दिखाएं तो ढेर सारे ‘नायक’ आपके सामने प्रकट हो जाएंगे!

क्योंकि यदि पंचायत और अंचल-ब्लॉक स्तर पर किसी भी दल के लोग ईमानदारी से काम कर दें, केवल सही जगह पर सही सवाल उठा दें तो तस्वीर बदल सकती है! बाद बाकी जो होगा नवंबर में देखा ही जाएगा! लेकिन फिलहाल हम जैसे आशावान लोग बिहार की बेहतरी के लिए कल्पना तो कर ही सकते हैं। यह अलग बात है कि सभी लोगों के पास इवेंट कंपनी नहीं है लेकिन पॉजीटिव इम्पैक्ट वाले इवेंट की कल्पना तो कोई भी कर सकता है! 

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