बिहार विधानसभा चुनाव की हलचल तेज होते ही एआईएमआईएम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी भी राज्य में सक्रिय हो गए हैं। ओवैसी ने ‘सीमांचल न्याय यात्रा’ के जरिए बिहार चुनाव का बिगुल फूंक दिया है। अपनी यात्रा में उन्होंने एनडीए से लेकर महागठबंधन तक सभी पर जमकर हमला बोला। औवेसी ने पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और आरएसएस चीफ मोहन भागवत से लेकर राजद अध्यक्ष लालू यादव और तेजस्वी यादव को भी नहीं बख्शा।
किशनगंज की रैली में ओवैसी ने लालू-तेजस्वी पर निशाना साधते हुए कहा कि हमने सेकुलर वोटों के बिखराव को रोकने और भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए लालू जी को महागठबंधन में एआईएमआईएम को भी शामिल करने के लिए ऑफर दिया था, लेकिन तेजस्वी को ऑफर सुनाई नहीं दिया।
असदुद्दीन ओवैसी ने 24 सितंबर को बिहार के सीमांचल क्षेत्र से अपनी चार दिवसीय न्याय यात्रा की शुरुआत की। किशनगंज से शुरू हुई यह यात्रा अररिया, कटिहार और पूर्णिया जिलों तक पहुंचेगी, जिसमें ओवैसी प्रतिदिन कई सभाएं कर लोगों से संवाद करेंगे।
पहले दिन किशनगंज में लगभग 100 किलोमीटर की यात्रा में ओवैसी ने 9 सभाओं को संबोधित किया था। इससे पहले बागडोगरा एयरपोर्ट पर उनके समर्थकों ने जोरदार नारों के साथ औवेसी का स्वागत किया।
दरअसल आरजेडी से दोस्ती का प्रस्ताव खारिज होने के बाद असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार पहुंचकर मोर्चा संभाल लिया है। ऐसा माना जा रहा है कि बिहार चुनाव में थर्ड फ्रंट की कवायद शुरू हो गई है।
औवेसी किशनगंज को सामने रखकर बिहार में अपने किले को चाकचौबंद करने की तैयारी में जुट गए हैं।
असदुद्दीन ओवैसी 27 सितंबर तक बिहार के सीमांचल इलाके में हैं। इस दौरान वह न केवल नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग और जनसभा कर रहे हैं, बल्कि नए गठबंधन की संभावना भी तलाश रहे हैं।
किशनगंज पहुंचने के बाद जब वे पत्रकारों से बात कर रह थे तो उनका तेवर वही पुराना वाला था। हालांकि इस बार वे नए साथियों की तलाश की बात करते दिखे। उन्होंने कहा, ‘मैं कई साथियों से मिलने और कई नई दोस्ती बनाने के लिए उत्सुक हूं।’
इस बार औवेसी राजद के अंदरखाने में मची लड़ाई पर भी खुलकर बोलते दिखे। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए कहा कि ‘हां मैं हैदराबाद से आया हूं, चांद से नहीं आया हूं।’
तेजस्वी यादव के सलाहकार संजय यादव का नाम लिए बगैर ओवैसी ने कहा, “जो हरियाणा से आकर बिहार में एमपी बन जाता है, उससे तुम्हारे पेट में दर्द नहीं होता। लेकिन मुझसे होता है। मैं हैदराबाद से जरूर आया हूं लेकिन जब तक जिंदा रहूंगा तब तक बिहार और सीमांचल आता रहूंगा। दुनिया की कोई ताकत मुझे सीमांचल आने से नहीं रोक सकती।”
गौरतलब है कि औवेसी की पार्टी ने 2015 में बिहार में दस्तक दी थी। बिते 10 साल में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम धीरे-धीरे बिहार की सियासत में मजबूत पकड़ बना रही है, खासकर राज्य के किशनगंज और पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र से जुड़े इलाकों में।
2015 विधानसभा चुनाव में पहली बार पार्टी ने उम्मीदवार उतारे थे। 6 सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशी दिए लेकिन एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी। कोचाधामन विधानसभा सीट पर मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान को 37,000 से अधिक वोट हासिल हुए थे। उनको लगभग 26% वोट मिले थे।
इसके बाद 2020 विधानसभा चुनाव में औवेसी ने अपनी पूरी ताकत इस इलाके में झोंक दी। 2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने दमखम दिखाया और 20 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए। उस चुनाव में पार्टी को 5 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। जीतने वालों में अमौर से अख्तरुल ईमान, बहादुरगंज से मो. अंजार नईमी, बायसी से सैयद रुकनुद्दीन, कोचाधामन से इजहार असफी और जोकीहाट से शाहनवाज आलम शामिल हैं। हालांकि 2022 में अख्तरुल ईमान को छोड़कर बाकी सभी चारों विधायक आरजेडी में शामिल हो गए।
औवेसी के पॉलिटिक्स को नजदीक से देखने पर आप यह जान पाएंगे कि यह नेता आखिर इस इलाके में इस कदर आक्रमक क्यों है? किशनगंज में 24 सितंबर को उन्होंने खुलकर कहा कि जब हर जाति का नेता बन सकता है तो इस इलाके में मुस्लिमों का अपना नेता क्यों नहीं बन पा रहा है।
गौर करने वाली बात यह है कि 2020 चुनाव में औवेसी ने 16 टिकट मुसलमानों को दिया गया था। 16 में से पांच मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे।
एआईएमआईएम ने 2020 के विधानसभा चुनाव में प्रयोग करते हुए गैर मुस्लिम उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारा लेकिन कामयाबी नहीं मिली। मनिहारी विधानसभा सीट पर गोरेटी मुर्मू को महज 2475 वोट मिले। बरारी सीट पर राकेश रोशन को 6598 मत मिले। फुलवारी शरीफ से कुमारी प्रतिभा को 5019 और रानीगंज विधानसभा सीट पर रौशन देवी को 2412 मत हासिल हुए।
2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने जिन 5 सीटों पर जीत हासिल की, वहां राजद और कांग्रेस के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे।
गौरतलब है कि बिहार के सीमांत जिला जिसे राजनीतिक दल सीमांचल पुकारते हैं, इसमें कुल 4 जिले हैं। कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज। इन चारों जिलों को मिलाकर कुल 24 विधानसभा सीटें हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक, किशनगंज में 68%, अररिया में 43%, कटिहार में 45% और पूर्णिया में 39% मुस्लिम आबादी है। यानी इन जिलों की सीटों पर मुस्लिम वोटर्स हार जीत में अहम भूमिका निभाते हैं।
इस इलाके में किसी भी दल का बड़ा नेता पनप नहीं रहा है। दरअसल कांग्रेस और राजद का शीर्ष नेतृत्व नहीं चाहता है कि मुस्लिम तबके से कोई बड़ा नेता निकले। इन पार्टियों को डर है कि अगर स्थानीय स्तर पर कोई नेता मजबूत होगा तो वह इस इलाके की आवाज बन जाएगा, जैसा कभी तस्लीमुद्दीन हुआ करते थे। ऐसे में वह चुनौती पेश कर सकता है। शायद ऐसा रिस्क तेजस्वी यादव नहीं लेना चाहते हैं।
ऐसे में पिछले एक दशक से औवेसी इस इलाके में मुस्लिम नेता का कार्ड खेलने में लगे हैं। वह अपने भाषणों में बार-बार कह रहे हैं कि जब हर जाति का अपना नेता हो सकता है तो मुस्लिम समाज का अपना नेता क्यों नहीं हो सकता। शायद, उनकी इस बात की चेतना लोगों तक पहुंच रही है। ऐसे में परिणाम क्या होगा यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा लेकिन औवेसी की सभाओं और यात्राओं में भीड़ तो बहुत कुछ इशारा कर ही रही है।