Friday, October 10, 2025
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खेती बाड़ी-कलम स्याही: नेपाल सीमा पर स्थित फारबिसगंज विधानसभा की कहानी

बिहार के कुछ इलाके ऐसे भी हैं जिसका रोजी रोटी का सम्बन्ध नेपाल से है। कुछ ऐसी ही कहानी फारबिसगंज विधानसभा क्षेत्र की है। यहां जब आप लोगों से बात करेंगे तो बातचीत में नेपाल का जिक्र जरूर होगा!

नेपाल से नजदीकी और सीमा पार तनाव की वजह से यहां के लोग उन तमाम मुद्दों पर अपनी राय रख रहे हैं जिससे सीमा के दोनों तरफ शान्ति बहाल हो सके। आखिर दोनों तरफ अपने ही लोग हैं।

दरअसल नेपाल में इन दिनों राजशाही के समर्थन में प्रदर्शन हो रहा है। नेपाल की अर्थव्यवस्था और शासन व्यवस्था की स्थिति ख़राब है। बेहतर जीवन और रोज़गार की तलाश में युवा दूसरे देशों का रुख़ कर रहे हैं। बिहार भी विधानसभा चुनाव के मूड में दिखने लगा है। लोगबाग बातचीत के दौरान राजनीति की चर्चा करने लगे हैं।

‘राजनीति में अब मुद्दों की अहमियत नहीं’

फारबिसगंज कस्बानुमा इलाका है। यहां बातचीत में व्यापार और नेपाल की बात हर कोई करता है। फारबिसगंज के सुभाष चौक पर एक चाय दुकान पर हमारी मुलाक़ात हृदय मंडल से होती है। उन्होंने मजकिया लहजे में कहा, “हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश का इतना दौरा करते हैं, उनको सड़क मार्ग से नेपाल जाना चाहिए और रास्ते में फारबिसगंज में बैठक कर लेना चाहिए क्योंकि यहां उनकी पार्टी भाजपा के विधायक खाली आराम कर रहे हैं!”

शहर के पटेल चौक के समीप हमारी मुलाक़ात राजेश कुमार गुप्ता से होती है। हमने गुप्ता जी से पूछा कि फारबिसगंज में इस बार चुनावी मुद्दा क्या है?

उन्होंने बताया कि राजनीति में मुद्दों की अब कोई अहमियत नहीं रह गयी है। विकास पर जाति हावी है। जाति के आधार पर राजनीति हो रही है। उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात रखी। उनके मुताबिक़ यदि कुछ भी बदलाव हमें देखना है तो शिक्षा पर जोड़ देना होगा और जनसंख्या पर नियंत्रण जरूरी है। नेपाल की घटनाओं पर भी उन्होंने अपनी बात रखी।

फारबिसगंज में भाजपा, कांग्रेस और राजद

बाजार में घुमते हुए हमारी भेंट एक युवा सरयू मंडल से होती है। उनका कहना है कि जाति और धर्म के आधार पर ही चुनाव का गणित हल होता आया है और इस बार भी यही होगा। ग्राउंड में लोगबाग सीटिंग विधायक के खिलाफ खुल कर बोलते दिखे। भाजपा यहां अक्सर अपने सीटिंग विधायक का टिकट काटती आई है। इससे पहले भी भाजपा ने अपने सिटिंग विधायक पद्म पराग राय वेणु का टिकट काटकर मंचन केशरी को टिकट दिया था।

कांग्रेस भी यहां हाथ- पैर मार रही है। इलाके में लालू प्रसाद की पार्टी भी सक्रिय है। कांग्रेस के जिलाअध्यक्ष भी सक्रिय दिखे। राजद ने भी अपने नेताओं के पोस्टर का इलाके में खूब इस्तेमाल किया है।

पटेल चौक से आगे बढ़ने पर हमें राजीव प्रसाद मिलते हैं। नेपाल की मौजूदा स्थिति पर वे बेहद दुखी थे। उन्होंने बताया कि नेपाल में इससे बढ़िया हालात तो राजा के शासन में थी। हम जिस जगह पर चुनावी बतकही कर रहे थे वहां से 20-22 किलोमीटर की दूरी पर नेपाल का विराटनगर शहर है, जिसे नेपाल की व्यवसायिक राजधानी माना जाता है।

गौरतलब है कि नेपाल में फैली अव्यवस्था को मुद्दा बनाकर राजशाही समर्थक फिर से राजशाही और हिंदू राष्ट्र के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे हैं। नेपाल में आप किसी से भी बात करें तो एक चीज़ साफ़ समझ में आती है कि नेपाल में जो व्यवस्था है, उसे लेकर कहीं न कहीं गहरी निराशा है। भ्रष्टाचार है, अव्यवस्था है, जिस तरह से सरकार को काम करना चाहिए था, वह नहीं हो पाया है।

फारबिसगंज स्टेशन पर हमारी मुलाक़ात मोहम्मद अमिन से होती है। उन्होंने बताया कि शहर तो बहुत छोटा है लेकिन इसके बावजूद यहां ढंग से काम नहीं होता है। उन्होंने कहा कि पानी बहाव और सफाई एक बड़ा मसला है। मुझे यहां लोग शिकायत करते बहुत मिले।

फारबिसगंज नाम कैसे पड़ा?

हमारे साथ घूम रहे दिल्ली से आए पत्रकार साथी के मन में फारबिसगंज नाम को लेकर भी कई सवाल उठ रहे थे। दरअसल यह शहर अलेक्जेंडर जेम्स फो‌र्ब्स के नाम पर है। वह यहीं रहता था। उसने अपने नाम पर फोरबेसाबाद शहर बसाया, जो बाद में फारबिसगंज के नाम से जाना जाने लगा। उसके बेटे आर्थर हेनरी फो‌र्ब्स की पहल पर फारबिसगंज जूट व अनाज मंडी में तब्दील हो गया। जूट के व्यापार में रैली ब्रदर्स यहां आए। इससे पहले ब्लाड्स्की, हेनरी केव, इराल मैके जैसे प्रसिद्ध व्यक्ति फो‌र्ब्स की सुल्तानपुर इस्टेट की गतिविधियों में संलिप्त थे।

ये तो हुई इस कस्बे की कहानी लेकिन आने वाले महीनों में फारबिसगंज की राजनीति चुनाव में किस तरफ जायेगी ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन इस छोटे शहर में हमें इतनी पुरानी इमारतें दिखी कि लगा कितनी कहानियाँ यह शहर खुद में समेटे है। वैसे भी यह फणीश्वर नाथ रेणु की माटी है, जहां हर कदम पर कथा है, मैला आँचल है, परती परिकथा है।

जब फणीश्वर नाथ रेणु ने लड़ा चुनाव

रेणु ने 1972 के बिहार विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा था। उनका चुनाव चिन्ह नाव था, हालांकि चुनावी वैतरणी में रेणु की चुनावी नाव डूब गयी थी लेकिन चुनाव के जरिए उन्होंने राजनीति को समझने-बूझने वालों को काफी कुछ दिया। मसलन चुनाव प्रचार का तरीका या फिर चुनावी नारे।

राजनीति में रेणु की सक्रियता काफी पहले से थी। साहित्य में आने से पहले वह समजावादी पार्टी और नेपाल कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता थे। ऐसे वक़्त में जब किसान की बात पूरा मुल्क कर रहा है, रेणु की बात पर हम सभी को सोचना चाहिए।

बिहार के अतिपिछड़े जिलों में से एक अररिया का यह विधानसभा क्षेत्र आने वाले समय किस रंग में दिखेगा, ये तो वक्त बताएगा लेकिन फिलहाल विधानसभा चुनाव से पहले यहां के लोगबाग खूब मुखर दिख रहे हैं।

यह भी पढ़ें- खेती बाड़ी-कलम स्याही: बिहार के सीमांत जिलों में दिखने लगी है चुनावी हलचल

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