Saturday, October 11, 2025
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बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शन के बीच पीएम शेख हसीना ने दिया इस्तीफा, छोड़ा देश

ढाकाः बांग्लादेश में हिंसक विरोध प्रदर्शन और ढाका मार्च के बीच प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और देश भी छोड़ दिया है। बीबीसी बांग्ला की रिपोर्ट के अनुसार शेख हसीना अपनी बहन शेख रेहना के साथ सैन्य हेलीकॉप्टर से भारत के अगरतला शहर रवाना हो गईं।

रॉयटर्स के मुताबिक, सेना प्रमुख जनरल वकर-उज-जमान ने हितधारकों से मुलाकात की। इसके बाद मीडिया को संबोधित किया और कहा कि “देश में कर्फ्यू या किसी आपातकाल की जरूरत नहीं है, आज रात तक संकट का समाधान निकाल लिया जाएगा। सेना प्रमुख ने छात्रों से शांत रहने और घर वापस जाने की अपील की है। सेना के साथ चर्चा में मुख्य राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि मौजूद थे।

हसीना का इस्तीफा ऐसे समय में आया है जब हजारों प्रदर्शनकारी राजधानी ढाका की सड़कों पर उतर आए हैं। एक दिन पहले पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में करीब 100 लोग मारे गए थे। खबरों की मानें तो कुछ प्रदर्शनकारियों ने ढाका में हसीना के आधिकारिक आवास पर धावा बोल दिया है।

ये भी पढ़ेंः बांग्लादेश: कोटा सिस्टम को लेकर शुरू हुआ विरोध पीएम शेख हसीना के इस्तीफे और असहयोग आंदोलन में कैसे तब्दील हो गया?

बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर चल रहा आंदोलन रविवार फिर से हिंसको हो गया और सोमवार को और व्यापक हो गया। प्रदर्शनकारियों ने अपनी एक सूत्री मांग (शेख हसीना का इस्तीफा ) को लेकर सोमवार “ढाका मार्च” का कार्यक्रम तय किया था। छात्र नेताओं इस आह्वान पर हजारों लोग ढाका के उपनगरीय इलाकों की ओर कूच कर रहे हैं।

पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया गया है और इंटरनेट बंद कर दिया गया है। ‘फेसबुक’, ‘मैसेंजर’, ‘व्हॉट्सऐप’ और ‘इंस्टाग्राम’ पर भी रोक लगा दी गई है। इसके बावजूद राजधानी ढाका में उनके आधिकारिक आवास पर प्रदर्शनकारियों की भारी भीड़ ने धावा बोल दिया। मार्च करने वालों में महिलाएं भी अधिक संख्या में हैं।

छात्रों का इतना व्यापक और हिंसक आंदोलन क्यों?

गौरतलब है कि बांग्लादेश में जुलाई से ही छात्र आंदोलन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी छात्रों की मांग है कि देश में ज्यादातर बड़े सरकारी नौकरी में मौजूद आरक्षण को खत्म किया जाए। 21 जुलाई को बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोटा को रद्द करने के बाद, आंदोलन के समाप्त होने की उम्मीद थी। लेकिन यह समाप्त होने के बजाय और भी बदतर हो गया। आंदोलनकारी शेख हसीना के इस्तीफे की मांग पर अड़े रहे।

सरकार 1971 में खूनी गृहयुद्ध में पाकिस्तान से बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण देती है जिसका छात्र विरोध कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इस आजादी की लड़ाई में 30 लाख लोग मारे गए थे।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आरक्षण को घटाकर पांच प्रतिशत करने के बाद छात्र नेताओं ने विरोध प्रदर्शन रोक दिया था, लेकिन छात्रों ने कहा कि सरकार ने उनके सभी नेताओं को रिहा करने की उनकी मांग को नजरअंदाज कर दिया है, जिसके कारण प्रदर्शन फिर से शुरू हो गए।

कोटा सुधार विरोधों का नेतृत्व करने वाले छात्र मंच के समन्वयक नाहिद इस्लाम ने शनिवार को ढाका विश्वविद्यालय में एक सामूहिक सभा में कहा था कि “हम एक सूत्रीय मांग के बारे में निर्णय पर पहुँच गए हैं, मानव जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित करना और समाज में न्याय स्थापित करना। हमारी मांग प्रधानमंत्री शेख हसीना और मौजूदा सरकार के पतन के साथ-साथ फासीवाद को खत्म करना है। नाहिद ने कहा कि शेख हसीना को ना सिर्फ इस्तीफा देना चाहिए बल्कि उनके खिलाफ हत्याओं, लूट और भ्रष्टाचार के लिए मुकदमा चलाना चाहिए।

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