Friday, October 10, 2025
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असम में मुस्लिमों के निकाह से जुड़ा नया कानून क्या हैं?

गुवाहाटी: असम विधानसभा ने गुरुवार (29 अगस्त) को असम कंपल्सरी रजिस्ट्रेशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एंड डिवोर्स बिल-2024 पास कर दिया। इसी के साथ असम विधानसभा ने राज्य में मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण के लिए मौजूदा 89 साल पुराने कानून को भी रद्द कर दिया।

पुराने कानून के रद्द किए जाने के बाद अब मुस्लिम समाज के लोगों को शादी और तलाक का रजिस्ट्रेशन सरकारी अधिकारी द्वारा करना जरूरी हो गया है। 22 अगस्त को असम कैबिनेट ने इस बिल को मंजूरी दी थी। वहीं, पुराने कानून को रद्द करने के लिए अध्यादेश करीब पांच महीने पहले आया था। राज्य सरकार के अनुसार असम में मुस्लिम समाज के लिए लाया गया नया कानून बाल विवाह और दोनों पक्षों की सहमति के बिना विवाह जैसी स्थिति को रोकने में कारगर होगा। साथ ही बहुविवाह जैसी स्थिति पर भी नजर रखी जा सकेगी।

क्या था पुराना कानून?

असम में मुसलमानों के बीच विवाह और तलाक का पंजीकरण आजादी से पहले के असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम- 1935 के तहत होता रहा है। यह कानून मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुरूप था और राज्य ऐसे विवाह और तलाक को पंजीकृत करने के लिए किसी भी मुस्लिम व्यक्ति को लाइसेंस देने का अधिकार देता था। इस तरह राज्य भर में ऐसे 95 मुस्लिम रजिस्ट्रार या काजी थे, जो ये काम करते थे। इन्हें पब्लिक सर्वेंट माना जाता था। इस कानून में 2010 में संशोधन किया गया था और रजिस्ट्रेशन को स्वैच्छिक की जगह अनिवार्य कर दिया गया था। इसके साथ ही असम में मुसलमानों के निकाह-तलाक का पंजीकरण अनिवार्य हो गया था। हालांकि आयु कानूनी तौर पर विवाह योग्य न भी हो तो भी शादी का रजिस्ट्रेशन किया जा सकता था।

सरकार ने क्यों रद्द किया पुराना कानून?

असम कैबिनेट ने इस साल फरवरी में पुराने कानून को खत्म करने का फैसला किया था। इसके बाद मार्च में सरकार ने 1935 के अधिनियम को तत्काल प्रभाव से निरस्त करने वाला एक अध्यादेश जारी किया। इसके बाद से असम में मुसलमानों के बीच विवाह और तलाक के पंजीकरण के लिए कोई कानून नहीं था। ऐसे में गुरुवार को विधानसभा ने अध्यादेश की जगह असम रिपिलिंग बिल-2024 पारित किया।

1935 के कानून को खत्म करने के पीछे राज्य सरकार का मुख्य तर्क यह था कि यह नाबालिगों के बीच भी विवाह के पंजीकरण की अनुमति देता था। इस निरस्त हो चुके कानून की धारा-8 में कहा गया था कि यदि दूल्हा और दुल्हन दोनों नाबालिग हों, तो उनके विवाह के लिए आवेदन उनके वैध अभिभावक की ओर से किया जाएगा।

नए मुस्लिम मैरिज लॉ में क्या है?

नए कानून के तहत विवाह पंजीकरण में अब काजियों की कोई भूमिका नहीं है। पंजीकरण करने वाला अधिकारी सरकार के विवाह और तलाक रजिस्ट्रार से होगा।

नए कानून के तहत विवाह पंजीकृत करने के लिए कुछ शर्तों को पूरा करना अनिवार्य होगा। इन शर्तों के तहत शादी से पहले महिला की आयु 18 वर्ष और पुरुष की 21 वर्ष होनी चाहिए। विवाह दोनों पक्षों की स्वतंत्र सहमति पर होना चाहिए। अधिकारी को पंजीकरण की सूचना देने से पहले कम से कम एक पक्ष को मैरिज एंड डिवोर्स रजिस्ट्रार के क्षेत्र वाले जिले में कम से कम 30 दिनों का निवासी होना चाहिए। इसके अलावा दोनों पक्षों को मुस्लिम लॉ के तहत निषिद्ध रिश्तों में नहीं होना चाहिए।

दोनों पार्टियों को अपनी पहचान, उम्र और निवास स्थान को प्रमाणित करने वाले दस्तावेजों के साथ पंजीकरण अधिकारी को कम से कम 30 दिन पहले नोटिस देना आवश्यक है। यह प्रावधान स्पेशल मैरिज एक्ट के समान है।

यदि पंजीकरण करने वाले अधिकारियों को लगता है कि दोनों में से कोई भी पक्ष नाबालिग है तो उन्हें कार्रवाई करनी चाहिए। यदि अधिकारी को दस्तावेजों की जांच के दौरान किसी भी पक्ष के नाबालिग होने का पता चलता है, तो उसे तुरंत बाल विवाह निषेध अधिनियम- 2006 के तहत नियुक्त क्षेत्राधिकार वाले बाल विवाह संरक्षण अधिकारी को इसकी सूचना देनी होगी। सभी रिकॉर्ड और दस्तावेज भेजने होंगे ताकि आरोपी के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई हो सके।

अगर कोई अधिकारी जानबूझकर किसी ऐसे विवाह का पंजीकरण करता है जो कानून में दिए किसी भी शर्त का उल्लंघन करता है, उसे एक साल तक की कैद और 50,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

विधानसभा में हिमंत बिस्व सरमा ने क्या कहा

बिल पर चर्चा करते हुए विधानसभा में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कहा कि ‘हमारा उद्देश्य सिर्फ बाल विवाह खत्म करना नहीं है। हम काजी सिस्टम भी खत्म करना चाहते हैं।’ दरअसल चर्चा के दौरान विपक्षी पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के विधायक अमिनुल इस्लाम ने 1935 के कानून को रद्द करने को लेकर सवाल खड़ा किया। उन्होंने कहा कि अगर सरकार का मकसद बाल विवाह ही खत्म करना था तो इसे कानून में संशोधन के जरिए भी किया जा सकता था। पूरे काननू को रद्द करने की क्या जरूरत थी?

इस पर सरमा ने कहा कि संशोधन नाकाफी साबित होते। उन्होंने कहा कि सरकार का मकसद काजी के रोल को भी खत्म करना था। सरमा ने इसी क्रम में पिछले साल बाल विवाह को लेकर चार हजार लोगों की हुई गिरफ्तारी का भी जिक्र किया, जिसमें ज्यादातर ज्यादा उम्र के पुरुष थे जिन्होंने नाबालिग लड़कियों से विवाह किया था। यही नहीं, रिश्तेदारों और अभिभावकों ने भी इसे मंजूरी दी थी।

सरमा ने कहा, ‘हमने पाया कि काजी बाल विवाह भी पंजीकृत करते हैं…जब वे मामले उच्च न्यायालय में आए, तो उन्होंने कहा कि उनके पास बाल विवाह को पंजीकृत करने की शक्ति है…और उच्च न्यायालय ने उन्हें जमानत दे दी क्योंकि काजियों के पास मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम के तहत बाल विवाह पंजीकृत करने की शक्ति है। इसका मतलब है कि वे (काजी) सैद्धांतिक रूप से बाल विवाह के विरोध में नहीं हैं।’ मुख्यमंत्री ने कहा एक सरकारी अधिकारी द्वारा पंजीकरण से जवाबदेही बढ़ेगी।

सरमा ने सुप्रीम कोर्ट के 2006 के एक आदेश का भी जिक्र किया जिसके मुताबिक सभी शादियों का रजिस्ट्रेशन किया जाना जरूरी है। सरमा ने कहा कि ऐसे में जाहिर है राज्य को ये जिम्मेदारी दी गई है लेकिन इसे निभाने के लिए राज्य काजियों जैसी निजी संस्था पर निर्भर नहीं रह सकते।

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