Friday, October 10, 2025
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अमेरिका में क्या फिर मंदी आने वाली है…क्यों मची है हलचल?

नई दिल्ली: दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी अमेरिका क्या मंदी की ओर बढ़ रहा है? जो कुछ भी हो रहा है, वो वाकई मंदी की आहट है या अर्थव्यवस्था बस कुछ समय के लिए खराब स्थिति में है? अमेरिका में हालिया आर्थिक संकेत कम से कम ये बता रहे हैं कि आने वाले दिन आर्थिक लिहाज से चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं। कई विश्लेषकों का तो यह कहना है कि अर्थव्यवस्था अगले साल की शुरुआत में मंदी में हो सकती है। ऐसा क्यों कहा जा रहा है? आखिर ऐसा क्या हुआ है, जिसकी वजह से अमेरिका में मंदी की आहट सुनी जाने लगी है?

अमेरिका में मंदी का मतलब पूरी दुनिया पर इसका बड़ा असर पड़ सकता है। पिछले सप्ताह के आखिरी दिन और फिर सोमवार को शुरुआती सत्र में जिस तरह भारतीय शेयर बाजार ने गोता लगाया, उससे साफ हो गया कि निवेशक संशय में है और उनमें पैसा निकालने की जल्दबाजी है। ऐसा ही कुछ हाल दुनिया के अन्य शेयर बाजारों का भी है। क्या है ये आने वाली मंदी की आशंका की पूरी कहानी और अब तक क्या बातें सामने आई हैं…आइए इस पूरे पहलू को समझते हैं।

अमेरिका में मंदी की आहट

अमेरिका में मंदी की आहट सुनाई देने की एक बड़ी वजह बेरोजगारी है। शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार जुलाई में बेरोजगारी दर लगभग तीन साल के उच्चतम स्तर 4.3 प्रतिशत पर पहुंच गई है। यह वृद्धि पिछले साल जून में 4.1 प्रतिशत से अधिक है। साथ ही पिछले साल अप्रैल में पांच दशक के निचले स्तर 3.4 प्रतिशत से भी कहीं ज्यादा है। माना जा रहा है कि इस आंकड़ों ने सितंबर में अगली फेडरल रिजर्व बैठक में ब्याज दरों में कटौती के लिए मंच तैयार कर दिया है।

साथ ही अमेरिकी विनिर्माण गतिविधि आठ महीने के निचले स्तर पर आ गई है। नए ऑर्डरों में गिरावट है। इंस्टीट्यूट फॉर सप्लाई मैनेजमेंट (आईएसएम) ने पिछले गुरुवार को कहा कि विनिर्माण पीएमआई (Purchasing Manager’s Index) पिछले महीने गिरकर 46.8 पर आ गया, जो नवंबर के बाद से सबसे कम रीडिंग है। यह जून में 48.5 थी। पीएमआई का 50 से नीचे रहना विनिर्माण क्षेत्र में संकुचन का संकेत देता है, जिसका अर्थव्यवस्था में 10.3% योगदान है।

इन सबके बीच अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने बेंचमार्क उधार लागत (बॉरोइंग कॉस्ट) को पिछले 23 साल के शीर्ष स्तर 5.25%-5.50% पर बनाए रखा है। कुछ विश्लेषकों की चिंता है कि लंबे समय तक चलने वाली सख्त मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था को मंदी की ओर धकेल सकती है।

दूसरी ओर गोल्डमैन सैश ग्रुप (Goldman Sachs) ने भी अपने अनुमानों में मंदी की आशंका का प्रतिशत बढ़ा दिया है। गोल्डमैन सैश ग्रुप ने अगले साल अमेरिका में मंदी आने के अनुमान को 15 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी कर दिया है। हालांकि, ग्रुप ने खतरों को सीमित ही बताया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार गोल्डमैन के अर्थशास्त्रियों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘हम मंदी के जोखिम को सीमित मानते हैं। अर्थव्यवस्था कुल मिलाकर ठीक दिख रही है, कोई बड़ा
वित्तीय असंतुलन नहीं है और फेडरल रिजर्व के पास ब्याज दरों में कटौती करने के लिए बहुत जगह है और जरूरत पड़ने पर वह जल्दी से ऐसा कर सकता है।’

इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार ब्लूमबर्ग के रेटिंग रणनीतिकार साइमन व्हाइट कहते हैं, ‘बाजार समय से पहले ही मंदी की आशंका जता रहा है, जिसके अगले साल से पहले आने की संभावना नहीं है।’

वहीं, एनेक्स वेल्थ मैनेजमेंट के मुख्य अर्थशास्त्री ब्रायन जैकबसेन ने कहा, ‘फेड (फेडरल रिजर्व) जीत को नुकसान में बदलने की कगार पर है। आर्थिक गति उस बिंदु तक धीमी हो गई है जहां सितंबर में दर में कटौती अपर्याप्त साबित सकती है। उन्हें मंदी को रोकने के लिए सामान्य तिमाही प्रतिशत कटौती की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण कटौती लागू करना होगा।’

मंदी क्या होती है?

किसी भी अर्थव्यवस्था में मंदी का मतलब आर्थिक गतिविधियों में एक बड़ी गिरावट होता है और जो लंबे समय तक बना रहती है। इसका असर आमतौर पर जीडीपी, वास्तविक आय, रोजगार, औद्योगिक उत्पादन और थोक-खुदरा बिक्री में दिखाई देता है। लगातार दो तिमाही में नकारात्मक आर्थिक वृद्धि के बाद की स्थिति को मंदी के तौर पर देखा जाता है। मंदी आने की कई वजहें हो सकती हैं। इसमें कम उपभोक्ता और बढ़ता व्यावसायिक खर्च, उच्च बेरोजगारी और वित्तीय संकट जैसे कारक शामिल हैं।

मंदी के दौरान उत्पादन और निवेश में कटौती हो सकती हैं जिससे नौकरियों पर बुरा असर पड़ता है। इससे बाजार प्रभावित होता है। लोग की खरीदारी में कमी आती है और पैसे का बहाव प्रभावित होता है। ऐसे में सरकारें और केंद्रीय बैंक अक्सर अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने और मंदी के प्रभावों को कम करने के उद्देश्य से मौद्रिक और राजकोषीय नीति में बदलाव करती है। इसे और उदार बनाने की कोशिश होती है ताकि लोगों और उद्यमियों के पास ज्यादा पैसे हों और बाजार में इसका फ्लो बढ़े।

दुनिया भर के शेयर बाजार में हलचल

अमेरिका में मंदी की आहट से वैश्विक बाजारों में सोमवार को 10 प्रतिशत तक की बड़ी गिरावट देखने को मिली। एशिया के ज्यादातर बाजारों में दबाव के साथ कारोबार हो रहा है। जापान के शेयर बाजार में गिरावट का सबसे ज्यादा असर दिखा। बेंचमार्क निक्केई 10 प्रतिशत फिसल गया। सोल के बाजार 8 प्रतिशत, ताइपे 4.5 प्रतिशत, जकार्ता 2 प्रतिशत, हांगकांग 1.43 प्रतिशत और शंघाई के बाजार में करीब एक प्रतिशत की गिरावट है।

दक्षिण कोरियाई न्यू एजेंसी योनहाप ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि गिरावट के साथ स्थानीय शेयर बाजार के बेंचमार्क केओएसपीआई 200 में पांच मिनट के लिए कारोबार रोक दिया गया। दुनिया के सबसे बड़े शेयर बाजार अमेरिका में भी बड़ी गिरावट देखी जा रही है। पिछले हफ्ते शुक्रवार को डाओ 1.51 प्रतिशत से अधिक की गिरावट के साथ बंद हुआ था, यह लगातार दूसरा दिन था, जब डाओ में गिरावट देखने को मिली।

अमेरिका में बेरोजगारी…क्या वाकई आएगी मंदी?

अमेरिका के हालिया रोजगार डेटा से पता चलता है कि जुलाई में नौकरी की वृद्धि धीमी होकर 114,000 रह गई जो इसके पिछले महीने 179,000 थी। इसी से यह चिंता पैदा हो गई है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ सकती है। जुलाई के अंत में सरकारी आंकड़ों से संकेत मिलता है कि श्रम बाजार में गिरावट मुख्य रूप से कम नियुक्तियों के कारण हुई है। छंटनी के स्तर में वृद्धि नहीं है। नियुक्तियां जरूर जून में पिछले चार साल में सबसे कम हुई हैं।’

जुलाई में औसत प्रति घंटा वेतन में साल-दर-साल 3.6% की वृद्धि हुई, जो जून की 3.8% वृद्धि से थोड़ा कम है। फेडरल रिजर्व आम तौर पर अपने 2% मुद्रास्फीति लक्ष्य के अनुरूप 3.0% और 3.5% के बीच वेतन वृद्धि का अनुमान रखता है।

की वेल्थ के जॉर्ज माटेयो के अनुसार, ‘फेड को बारीकी से अभी सभी पहलुओं पर निगरानी रखनी चाहिए। जबकि अर्थव्यवस्था का विस्तार जारी है और नौकरियां जोड़ी जा रही हैं, ऐसे में मंदी की भविष्यवाणियां कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ा कर बताई जा रही हैं। फिर भी आर्थिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है और फेड को संभावित नकारात्मक जोखिमों के प्रति सचेत रहना चाहिए।’

वहीं, कार्सन ग्रुप के रयान डेट्रिक के अनुसार महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या हम सीधे मंदी की ओर जा रहे हैं या केवल एक कठिन दौर से गुजर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारा मानना ​​है कि मंदी को अभी भी टाला जा सकता है, लेकिन जोखिम जरूर बढ़ रहे हैं।

यह भी पढ़ें- भारत 75 साल बाद भी अमेरिका की बराबरी नहीं कर पाएगाः विश्व बैंक

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