Thursday, October 9, 2025
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Sambhal Masjid Case: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मु्स्लिम पक्ष की याचिका खारिज की, निचली अदालत के आदेश को रखा बरकरार

संभलः इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने संभल जामा मस्जिद (Sambhal Jama Masjid) मामले में मस्जिद समिति की याचिका खारिज कर दी है। मस्जिद समिति ने बीते साल 19 नवंबर को निचली अदालत के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी। 

गौरतलब है कि निचली अदालत द्वारा इस संभल की शाही मस्जिद का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया था। इस मामले में यह आरोप लगाया गया था कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर किया गया है। 

इलाहाबाद हाई कोर्ट में जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि हिंदू पक्षकारों पर प्रथम दृष्टया कोई प्रतिबंध नहीं है। 

हिंदू पक्ष की दलील

संभल की ट्रायल कोर्ट में आठ वादियों द्वारा मुकदमा दायर करते हुए कहा गया था कि संभल मस्जिद का निर्माण 1526 ईस्वी में वहां मौजूद मंदिर को ध्वस्त करके किया गया था। 

ट्रायल कोर्ट के आदेश के बाद मस्जिद का सर्वे 19 नवंबर और फिर 24 नवंबर को कराया गया था। इसके बाद मस्जिद समिति ने इलााहबाद हाई कोर्ट का रुख करते हुए दलील दी थी कि सर्वेक्षण जल्दबाजी में कराया गया था और इसके लिए उन्हें नोटिस भी नहीं जारी किया गया था। 

हिंदू पक्ष की ओर से दी गई दलील में यह भी कहा गया कि विवादित मस्जिद के नीचे प्राचीन हरिहर मंदिर मौजूद है जो कि भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि को समर्पित था। 

यह भी पढ़ें – संभल जामा मस्जिद में हवन करने पहुंचे थे लोग, पुलिस ने हिरासत में लिया

दलील में यह भी कहा गया था कि बाबर के आदेश पर मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कार्य कराया गया। हिंदू पक्ष की तरफ से मामले में ट्रायल कोर्ट में वाद दायर किया था। जिसके बाद उसी दिन सर्वेक्षण कराने की अनुमति दी गई थी। 

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर नवंबर में रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक सर्वेक्षण अदालत के खिलाफ मामला हाई कोर्ट में लिस्टेड नहीं हो जाता तब तक ट्रायल कोर्ट आगे नहीं बढ़ेगा। 

ASI ने क्या कहा? 

अदालत के सामने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कहा कि मस्जिद केंद्र सरकार द्वारा संरक्षित स्मारकों में शामिल है। अदालत ने कहा कि इसे सार्वजनिक पूजा स्थल के रूप में चिन्हित नहीं किया जा सकता क्योंकि इस दावे में समर्थन में कोई रिकॉर्ड नहीं है।

वहीं, सर्वे का नेतृत्व करने वाले एडवोकेट कमिश्नर ने पहले ही ट्रायल कोर्ट के समक्ष सीलबंद सर्वेक्षण रिपोर्ट सौंप दी है।

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