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‘एम्स’ स्वदेशी एमआरआई मशीन सिस्टम पर अक्टूबर में शुरू कर सकता है ह्यूमन ट्रायल

नई दिल्ली: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली द्वारा भारत के पहले स्वदेशी रूप से विकसित ‘एमआरआई मशीन सिस्टम’ पर ह्यूमन ट्रायल अक्टूबर में शुरू होने की उम्मीद की जा रही है। मेडिकल इमेजिंग के लिए स्वदेशी 1.5 टेस्ला एमआरआई सिस्टम एक राष्ट्रीय मिशन स्वदेशी मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (आईएमआरआई) के तहत बनाई जाएगी।

इस मिशन को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) द्वारा स्पॉन्सर किया गया है और इसे सोसाइटी फॉर एप्लाइड माइक्रोवेव इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग एंड रिसर्च (एसएएमईईआर) में लागू किया जा रहा है, जो एमईआईटीवाई के तहत एक स्वायत्त सरकारी संस्थान है।

जानवरों पर परीक्षण का चरण खत्म

सी-डैक (त्रिवेंद्रम), सी-डैक (कोलकाता), आईयूएसी (नई दिल्ली) और डीएसआई-एमआईआरसी (बैंगलोर) एमआरआई सिस्टम को डिजाइन और विकसित करने के लिए सहयोगी एजेंसियों के रूप में काम करेंगे> एमईआईटीवाई ने बताया, “पशु परीक्षण समाप्त हो गए हैं।”

इसके अलावा आगे बताया गया कि आरएफ पावर एम्पलीफायर, हाई पावर टी/आर स्विच, आरएफ स्पेक्ट्रोमीटर, आरएफ कॉइल्स, आरएक्स फ्रंट एंड्स, कंट्रोल यूनिट, काउच और आईएमआरआई सॉफ्टवेयर के सब-सिस्टम डेवलपमेंट और टेस्टिंग को पूरा कर लिया गया है और चुंबक, ग्रेडिएंट कॉइल और ग्रेडिएंट एम्पलीफायर के साथ इंटीग्रेट किया गया है।

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की आरएंडडी ग्रुप को-ऑर्डिनेटर, सुनीता वर्मा ने कहा, “भारत न केवल घरेलू मांग को पूरा करने बल्कि अगले एक अरब लोगों की सेवा करने के लिए मेडिकल डिवाइस सहित किफायती और स्वदेशी स्वास्थ्य समाधान विकसित करने में एक बड़ी सफलता पाता है।”

एसएएमईईआर और एम्स के बीच MoU का हिस्सा है ये प्रोजेक्ट

एमआरआई मशीन एसएएमईईआर और एम्स के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) का हिस्सा है। एमओयू के तहत, दोनों संस्थान मिलकर हाई-फिल्ड/लो फिल्ड मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग एमआरआई/न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेसोनेंस (एनएमआर) सिस्टम को डेवलप करेंगे और मेडिकल एप्लीकेशन के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी, माइक्रोवेव सिस्टम और इससे जुड़े एरिया में रिसर्च को प्रमोट करेंगे।

एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डॉ. एम. श्रीनिवास ने कहा, “देश की क्षमताओं को प्रदर्शित करना महत्वपूर्ण है और चिकित्सकों को अधिक और बेहतर चिकित्सा उपकरण विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम करना चाहिए।”

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