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भारत में पिछले एक दशक में 17 करोड़ गरीबी से बाहर निकले, विश्व बैंक की अपनी रिपोर्ट में क्या कहा है?

नई दिल्ली: भारत ने बड़ी कामयाबी हासिल की है। भारत ने पिछले एक दशक में 17.1 करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकाला है। साथ ही  रोजगार वृद्धि ने 2021-22 से कामकाजी आयु वर्ग की आबादी में वृद्धि को पीछे छोड़ दिया है।

विश्व बैंक की एक नई ‘इंडिया पोवर्टी एंड इक्विटी ब्रीफ’ नाम से आई रिपोर्ट के अनुसार अत्यधिक गरीबी (प्रतिदिन 2.15 डॉलर/करीब 180 भारतीय रुपये से कम पर जीवन यापन) में तेज गिरावट आई है। यह 2011-12 में 16.2% था जो अब 2022-23 में सिर्फ 2.3% तक रह गया है। रिपोर्ट के अनुसार यह जीवन स्तर में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है।

रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक गरीबी 18.4% से घटकर 2.8% हो गई है। शहरी क्षेत्रों में यह दर 10.7% से घटकर 1.1% हो गई है, जिससे ग्रामीण-शहरी अंतर प्रभावी रूप से 7.7 प्रतिशत से घटकर 1.7 प्रतिशत रह गया है। इस तरह से 16% की वार्षिक गिरावट है।

निम्न-मध्यम आय वर्ग में भारत

रिपोर्ट के अनुसार भारत भी निम्न-मध्यम आय वर्ग में आ गया है। वैश्विक निम्न या मध्यम आय वाले देश (LMIC) के तहत गरीबी रेखा में 3.65 डॉलर प्रतिदिन के मापदंड को देखें तो रिपोर्ट के अनुसार गरीबी 61.8% से घटकर 28.1% हो गई। इससे 37 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण गरीबी 69% से घटकर 32.5% और शहरी गरीबी 43.5% से घटकर 17.2% हो गई, जिससे ग्रामीण-शहरी अंतर 25 से घटकर 15 प्रतिशत अंक रह गया, जो 7% की वार्षिक गिरावट है।

भारत के पांच सबसे अधिक आबादी वाले राज्य – उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में 2011-12 में देश के 65% अत्यंत गरीब रहते थे। 2022-23 तक, देश की कुल गरीबी में कमी लाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। देश भर में अत्यधिक गरीबी में कुल गिरावट में लगभग दो-तिहाई इन्हीं राज्यों से हैं। 

रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रगति के बावजूद, इन राज्यों में 2022-23 तक भारत के 54% अत्यंत गरीब और 2019 और 2021 के बीच 51% बहुआयामी गरीब लोग रहते हैं। यह गौर करने वाली बात है कि व्यापक पैमाने पर बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) द्वारा मापी गई गैर-मौद्रिक गरीबी 2005-06 में 53.8% से 2019-21 तक 16.4% तक तेजी से गिरी।

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